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________________ जीवन विज्ञान: स्वस्थ समाज रचना का संकल्प रोटियां मत खाना ।' लोगों ने सुना । वह कुत्ते के पीछे भागता ही जा रहा था । यह पागलपन जसा बात लगता है। किंतु जिसमे सवेदनशीलता का विकास होता है, उसके लिए यह पागलपन नहीं सहज है। उसके मन में किसी प्रकार का छलावा नहीं होता। जब इतनी संवेदनशीलता जाग जाती है, तब समाज को सुधरने में समय नहीं लगता । नैतिकता, प्रामाणिकता और चरित्र का विकास सहज होने लगता है । १२ जब तक भारत में संवेदनशीलता की प्रखरता थी, तब तक उसका चित्र बहुत सुन्दर था। बाहर से आने वाले यात्रियों ने भारत का चित्र प्रस्तुत करते हुए लिखा था- भारत में घरों के ताले नहीं लगते । दरवाजे खुले रहते हैं। किसी को यदि चरित्र का शिक्षण लेना हो तो वह भारत आए और यहां से वह शिक्षा प्राप्त करे। ऐसा चित्र संवेदनशीलता के विकास से ही संभव है । जैसे जैसे संवेदनशीलता कम हुई, वैसे वैसे संवेग प्रबल हुए और सारी अनैतिकता बढ़ी। आज के विद्यालयों की विशाल योजनाएं हैं। उनमें भाषा, साहित्य, कला, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, खगोल- ये सारे विषय सिखाए जाते हैं, पर इनके साथ भावों के परिष्कार की बात नहीं है । इसे आवश्यक भी नहीं माना गया है। आज आवश्यक माना जाता है भाषा, साहित्य, कला आदि का अध्ययन जिससे अच्छी जीविका कमाई जा सके, बौद्धिक स्तर ऊंचा उठ सके, दूसरे राष्ट्रों के साथ अच्छा सम्पर्क स्थापित किया जा सके । व्यवसाय और सम्पर्क का विकास किया जा सकता है किन्तु मूल में जो चरित्र की कमी है, वह अन्य सब चीजों को खोखला बना डालती है । जब चरित्र नहीं होता तब नींव कमजोर हो जाती है । पता नहीं, शिक्षाशास्त्रियों और शिक्षानीति का निर्धारण करने वालों का क्या दृष्टिकोण बना कि उन्होंने विद्यालयों के लिए अनेक योजनाएं बनाईं, अनेक प्रारूप तैयार किए, पर किसी में भी चरित्र - विकास की योजना सन्निहित नही की, संवेग - नियन्त्रण की योजना सम्मिलित नहीं की। इसका मतलब यह हुआ कि हमारी नींव कमजोर रह गई और उस कमजोर नींव पर बढ़िया मकान बन गया । पर वह मकान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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