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________________ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प जब तक यह सत्र नहीं जड़ता, तब तक सही अर्थ में समाज बनता ही नहीं। संवेदनशीलता का अर्थ है-एक दूसरे के कष्ट में सहभागिता की अनुभूति। जब यह समाज में आती है तब नैतिकता और प्रामाणिकता का विकास होता है, क्रूरता कम होती है। संवेदनशीलता का सूत्र जब टूट जाता है तब क्रूरता, अप्रामाणिकता, अनैतिकता, मिलावट आदि बुराइयां बढ़ती हैं। जब आदमी संवेदनशील नहीं होता तब वह दूसरों को कष्ट देने में संकोच नहीं करता। जिस व्यक्ति में यह भावना होती है कि दूसरों को कष्ट देने का अर्थ है स्वयं को कष्ट देना, वह आदमी कभी बुराई नहीं कर सकता, धोखा नहीं दे सकता, क्रूर व्यवहार नहीं कर सकता। जब यह चेतना सिकुड़ जाती है तब कोई भी क्रर कर्म करने में हिचकिचाहट नहीं होती। संवेदनशीलता है एक दूसरे के साथ एकात्मकता का व्यवहार करना, तादात्म्य की अनुभूति के लिए व्यक्तित्व का परिष्कार करना। इसके लिए प्रयत्न करना होता है। संवेग वैयक्तिक तत्त्व है। इसका परिष्कार करना बहुत जरूरी है। जीवन विज्ञान की प्रक्रिया परिष्कार की प्रक्रिया है। संवेग के परिष्कार का अर्थ है निषेधात्मक भावों का परिष्कार । क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या, घृणा-ये सब निषेधात्मक भाव हैं। विधायक भावों का जितना विकास होगा, उतना ही संवेदनशीलता का सूत्र आगे बढेगा। आनुवंशिकता का परिष्कार भी संवेदन- परिष्कार के द्वारा किया जा सकता है। आनुवंशिकता का प्रभाव व्यक्ति के चरित्र, नैतिकता और मानसिकता पर ज्यादा होता है। एक लड़का बगीचे में घुसा और आम के वृक्ष पर चढ़कर आम तोड़ने लगा। वह चोरी से ही आया था। माली ने उसे देख लिया। माली बोला-'चोरी करते हुए तुझे शरम नहीं आती? कहां है तेरा बाप? लड़का बोला-'वह दूसरे पेड़ पर आम तोड़ रहा है। जब बाप एक पेड़ पर चढ़ा होता है तो लड़का दूसरे पेड़ पर क्यों नहीं चढ़ेगा? नैतिकता आनुवंशिकता से प्रभावित होती है। संवेग- परिष्कार के द्वारा इसका भी परिष्कार किया जा सकता है। मनोविज्ञान ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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