SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व निर्माण का उपक्रम : जीवन विज्ञान विग्रह अनिवार्य बन जाता है। आग्रह के बिना विग्रह हो नहीं सकता। ___ आदमी केवल विग्रह को मिटाना चाहता है, यह कभी संभव नहीं है। परिग्रह और आग्रह का जब तक समाधान नहीं हो जाता तब तक विग्रह का समाधान नहीं मिल सकता। बसंत चला जाता है, पतझड़ आ जाता है। एक जाता है, दूसरा आ जाता है। यह क्रम चलता रहता है । न पतझड़ को रोका जा सकता है और न बसन्त को रोका जा सकता है। हम जड़ की बात को पकड़ें, परिग्रह का समाधान- सूत्र खोजें, आग्रह और विग्रह स्वतः निर्मूल हो जाएंगे। परिग्रह ही सारी समस्याएं पैदा कर रहा है। राष्ट्र का परिग्रह, राज्य का परिग्रह, औद्योगिक साम्राज्य का परिग्रह-ये सारे स्वामित्व समस्याएं पैदा करते हैं। हिंसक समस्याओं से निपटने के दो उपाय हैं-हिंसा के प्रति हिंसा और अहिंसक प्रतिरोध । अहिंसक प्रतिरोध एक कारगर उपाय है। आज उसके लिए कोई मानसिक तैयारी नहीं है। उसका कोई प्रशिक्षण नहीं है। हिंसा का प्रशिक्षण प्रतिदिन दिया जा रहा है पर अहिंसा का प्रशिक्षण कहां मिलता है ? इस दयनीय स्थिति में हम कैसे कहें कि आज अहिंसा के द्वारा हिंसा का प्रतिकार किया जा सकता है? आज मान लिया गया है कि हिंसा का प्रतिकार हिंसा है। बुद्धि यही तो काम करती है कि वह एक हिंसा को मिटाने के लिए दूसरी हिंसा प्रस्तुत कर देती है इसलिए उपेक्षा वाली बात भी समझ में नहीं आती। अहिंसा की बात समझ में आती है, पर उसका पालन कठिनाई से परे नहीं है। तब कोरा विकल्प हिंसा का रह गया। हिंसा समाधानकारक विकल्प नहीं है। वह हिंसा को बढ़ावा देने वाला विकल्प है। पुरानी पीढ़ी के रूपान्तरण की बात हम छोड़ दें। वह जैसे चल रही है, चलने दें। पर नई पीढ़ी के लिए आवश्यक चिन्तन करें। संभव है पुराने लोगों की समस्या भी सुलझ जाए। जीवन विज्ञान का उपक्रम नए व्यक्तित्व के निर्माण का उपक्रम है। इससे नए समाज और नए जीवन की कल्पना पूरी हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy