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सामाजिक मूल्यों का आधार : सत्य
१५७ कथावाचक रुंआसा- सा होकर बोला-' सेठजी ! गजब हो गया। मेरी बकरी मर गई। जिसका मैं प्रतिदिन दूध पीता था, वह आज नहीं रही। सेठ ने कहा-'अभी तो आप मुझे आश्वासन दे रहे थे और आप स्वयं एक बकरी के लिए रो रहे हैं?' वह बोला-'तुमने मर्म को नहीं समझा। लड़का मेरा नहीं था, बकरी मेरी थी।'
ममत्व विकट समस्याएं पैदा करता है। इसके कारण सिद्धांत और आचरण अलग-थलग जा पड़ते हैं, कथनी और करनी की दी बढ़ जाती है। यह सामाजिक जीवन को प्रभावित करने वाली बहुत बड़ी समस्या है। ५. प्रामाणिकता सत्य
समाज का अर्थ है-व्यवहार। दस-बीस आदमियों का एकत्रित हो जाना ही समाज नहीं है। समाज का तात्पर्य होता है-लेन-देन, विनियम,व्यवहार। समाज की यही परिभाषा है। हजार आदमी हों या हजार पशु हों वह समाज नहीं कहलाता। जहां परस्पर विनिमय होता है, व्यवहार होता है वह समाज कहलाता है। संस्कृत में दो शब्द हैं---समाज और समज। जहां व्यवहार होता है वह समाज और जहां व्यवहार की कोई गुंजाइश ही नहीं होती, वह है समज। पशुओं का समाज नहीं होता। उनका समूह समज कहलाता है। आदमियों का समूह समाज कहलाता है, क्योंकि वहां विनिमय है।
__ आज के समाज की भयंकर समस्या है व्यवहार की अप्रामाणिकता। अनैतिकता, क्रूर और जटिल व्यवहार के कारण समाज में हजारों समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। सामाजिक मूल्यों का विकास इसलिए नहीं हो रहा है कि आदमी में प्रामाणिकता नहीं है। एक समय था, जब भारतवासी प्रामाणिकता में बढ़े- चढ़े थे। उस समय यहां घी- दूध की नदियां बहती थी। चोरी, डकैती का नामोनिशान नहीं था। बड़े से बड़ा राज्याधिकारी प्रामाणिकता से कार्य करता था। महामात्य चाणक्य मगध साम्राज्य का सर्वेसर्वा था। जब वह राज्य का कार्य करता तब राज्य का दीपक जलाता और जब वह अपना व्यक्तिगत कार्य करता तब अपने घर का दीया जलाता। कितनी प्रामाणिकता? आज भी कुछेक राज्याधिकारी ऐसे हैं जो सरकारी काम में सरकार की मोटर
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