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________________ १४६ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प अहिंसा के विकास का छठा विघ्न है-अप्रयत्न। अहिंसा के विकास की दिशा में हमारा कोई प्रयत्न नहीं है। आस्था बने तब प्रयत्न हो सकता है। आस्था ही नहीं है तो प्रयत्न भी नहीं होगा। हिंसा के लिए कितना प्रयत्न हो रहा है? सारे संसार में शस्त्रों पर कितना खर्च हो रहा है? यदि शस्त्रों पर होने वाला खर्च मानव-कल्याण पर होने लगे तो कोई भी आदमी भूखा नहीं रह सकेगा। सारी गरीबी समाप्त हो जाएगी। फिर न स्वास्थ्य की चिन्ता, न रोटी की चिन्ता, न मकान की चिन्ता और न कपड़े की चिन्ता। यदि एक पंचवर्षीय योजना की राशि, जो शस्त्रों पर खर्च होती है, मानव-कल्याण में लगे, गरीबों की समस्या को सुलझाने में लगे तो पांच वर्ष में शायद संसार गरीबी से मुक्त हो जाए। हिंसा के अभ्यास का कितना प्रयत्न हो रहा है। पूर्वाभ्यास होता है, फौजियों की ट्रेनिंग रोज चलती रहती है। एक दृष्टि से ये सारे प्रयत्न हिंसा के तरीकों को खोज रहे हैं। अणु- अस्त्र भी बहुत पीछे रह गए। अब तो अतीन्द्रिय शक्ति के अस्त्र हैं, उनका विकास हो रहा है। अतीन्द्रिय शक्ति का विकास हो रहा है अस्त्रों के क्षेत्र में । बड़ी विचित्र स्थिति आ गई। प्राचीन काल से हम सुनते हैं कि एक ऐसी विद्या का प्रयोग किया जाता, जिससे शत्रु की सारी सेना नींद में सो जाती। यह तो प्राचीन कहानी है, किन्तु आज के वैज्ञानिकों ने भी ऐसे अस्त्र खोज निकाले हैं जिनके प्रयोग से शत्रु की सेना कर्त्तव्य - विमूढ़ है और निकम्मी हो जाती है। एक पक्षीय जो करना होगा. वह हो जाएगा। अब यह भी स्थिति आविष्कृत हो गई है कि किसी को रणक्षेत्र में जाने की जरूरत नहीं । प्रयोगशाला में बैठा बैठा वैज्ञानिक यह घटित कर देता है। आज अतीन्द्रिय अस्त्रों की यह होड़ भी शुरू हो गई है। इनमें अमेरिका, रूस आदि देशों ने काफी विकास कर लिया है । अन्तरिक्ष युद्ध की स्थिति भी बन गई है। इतना तीव्र और बहुआयामी प्रयत्न हो रहा है हिंसा के क्षेत्र में और अहिंसा के क्षेत्र में कोई प्रयत्न नहीं हो रहा है। अहिंसा को मानने वाले तो स्वयं लड़ रहे हैं। धर्म का क्षेत्र अहिंसा का क्षेत्र है पर उसे भी आज अहिंसा का क्षेत्र नहीं कहा जा सकता। उसमें आज इतनी साम्प्रदायिक तनातनी है कि वह स्वयं युद्ध के अखाड़े जैसा बन गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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