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समाज का आधार : अहिंसा का विकास कहेगा, अहिंसा से कोई काम नहीं चल सकता, डंडे से ही काम चलेगा। यह मान लिया गया कि अणु-अस्त्रों का विकास शक्ति- संतुलन के लिए, विश्व- शांति के लिए है। लोग खतरा महसूस करते हैं कि अणु-अस्त्रों से विश्व का विनाश होगा,किन्तु जिन राष्ट्रों के पास अणु- अस्त्र हैं वे इसका समाधान देते हुए कहते हैं कि अणु- अस्त्रों का अम्बार शक्ति- संतुलन के लिए है। अगर एक राष्ट्र के पास अणु- अस्त्र हैं और दूसरे के पास नहीं है तो जिसके पास है, वह सारे संसार को नष्ट कर सकता है। किन्तु जब दो के पास होते हैं तो कोई यह साहस नहीं कर सकता कि एक दूसरे पर आक्रमण करे। ऐसा पागलपन करने में उसे संकोच होगा। यह सारा शक्ति - संतुलन के लिए है।
वास्तव में आदमी में अहिंसा के प्रति कोई आस्था नहीं है। आस्था है दंड के प्रति, शस्त्र के प्रति। यह अनास्था भी अहिंसा के विकास में बहत बड़ा विघ्न है। आदमी ने कृत्रिम मान्यताएं बना दी
और उन्हीं के कारण वह अहिंसा की बात सोच ही नहीं सकता। उसका सारा जीवन कृत्रिम मान्यताओं के आधार पर ही चलता है।
यदि कभी हम एकांत के क्षणों में विचार करें तो हमें स्वयं पता चलेगा कि यथार्थ कितना है और कृत्रिमता कितनी है। बिना गहरे में उतरे इसका पता नहीं चल सकता। क्योंकि दो रूप बन जाते हैं, अतः भ्रम पैदा होता है। उस भ्रम का निरसन तभी हो सकता है जब सचाई सामने आए।
एक व्यक्ति विदेशयात्रा पर जा रहा था। अधिकारी ने कहा-तुम्हारा पासपोर्ट नकली है। उसने पूछा-कैसे? अधिकारी बोला-पासपोर्ट में लगे फोटो में तुम्हारा सिर गंजा है और अभी तुम्हारे सिर पर काफी बाल हैं। इसलिए यह पासपोर्ट नकली है। वह बोला-महाशय ! फोटो नकली नहीं है, मेरे बाल नकली हैं।
आज मूल स्थिति को पकड़ने में बड़ी समस्या हो रही है। अधिकारी भी भ्रम में आ जाते हैं। हमने भी अपने जीवन के आस-पास इतने कृत्रिम सिद्धांतों का एक जाल बिछा रखा है, ऐसा ताना-बाना बुन रखा है कि सचाई को सगाना बहुत कठिन हो रहा है।
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