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________________ समाज का आधार : अहिंसा का विकास १४१ कर्म- संस्कार भिन्न-भिन्न हैं, आनुवंशिकी भाषा में सबका जीन भिन्न भिन्न है, इसीलिए सबका व्यवहार एक जैसा नहीं होता। इसे बदलना बहुत प्रयत्न- साध्य है, सरल नहीं है। जो व्यक्ति साधना के क्षेत्र में बहुत प्रयत्नशील होता है, वही इन्हें बदल सकता है। बदलना संभव है पर उतना परम पुरुषार्थ करना हर व्यक्ति के वश की बात नहीं है और हर कोई व्यक्ति उतना पुरुषार्थ करना भी नहीं चाहता। अहिंसा के विकास का तीसरा विघ्न है-परिस्थिति या वातावरण । यह विघ्न कर्म- संस्कार या जीन जैसा प्रबल नहीं है। आदमी जिस दुनिया में जीता है वहां हिंसा का वातावरण भी है, हिंसा की परिस्थितियां भी हैं। परिस्थितियां हिंसा के लिए उत्तेजना पैदा कर रही हैं। एक व्यक्ति शांत है, किंतु दूसरा व्यक्ति भड़काने वाली प्रवृत्तियां करता है तो जो शांत है, वह भी हिंसोन्मुख बन जाता है। ऐसा बहुत बार होता है। पड़ोसी यदि दुष्ट स्वभाव वाला है, हिंसा में विश्वास करने वाला है और वह अवांछनीय प्रवृत्ति करता है तो जो अच्छा व्यक्ति है, अच्छे स्वभाव वाला है, उसमें उत्तेजना के बीज अंकुरित हो जाते हैं। एक पड़ोसी ने अपने घर से कूड़ा-कचरा निकाला और पास वाले घर के सामने डाल दिया। पास वाले ने देखा और कहा-भाई ! ऐसा क्यों करते हो? ऐसा करना तो अच्छा नहीं है। थोड़ा आगे जाओ और कचरा वहां डालो जहां किसी का मकान न हो। तुम अपने घर से निकले और मेरे घर के सामने कचरा डाल गए, इससे क्या लाभ हुआ? उसने कहा-जहां स्थान मिला वहां डाल दिया। मैं क्या कर सकता हूं? इतना रूखा उत्तर दिया। उसे एक बार समझाया, दो बार समझाया, तीन बार समझाया। वह नहीं माना। उस स्थिति में प्रतिक्रिया पैदा होना या प्रतिक्रियात्मक हिंसा का भाव पैदा होना स्वाभाविक है। एक है क्रियात्मक हिंसा और दूसरी है प्रतिक्रियात्मक हिंसा। इस प्रतिक्रिया की स्थिति में एक सिद्धांत बनता है कि ईंट का जवाब पत्थर से दो। यह क्रियात्मक सिद्धान्त नहीं है। यह प्रतिक्रियात्मक सिद्धान्त है। जब व्यक्ति के मन में प्रतिक्रिया पैदा हो जाती है तब वह इस प्रकार के सिद्धांत का निर्माण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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