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समाज का आधार : अहिंसा का विकास
हम जिसे चाहते हैं और हम जिसे नहीं चाहते-दोनों बातें दुनिया में चल रही हैं। अहिंसा को चाहते हैं, उसका विकास कम हो रहा है। हिंसा को नहीं चाहते, उसका विकास अधिक हो रहा है। हमारी चाह पर सब बातें निर्भर नहीं हैं।
आज हिंसा का विकास हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अहिंसा के विकास में विघ्न उपस्थिति हो रहे हैं। विघ्न सात हैं
१. हिंसा का संस्कार २. कर्म का संस्कार या जीन ३. परिस्थिति या वातावरण ४. शरीरगत रसायन ५. अनास्था ६. अप्रयत्न ७. प्रशिक्षण और अनुसंधान की कमी।
पहला विघ्न है-हिंसा का संस्कार, जिसकी चर्चा हम कर चुके हैं। दूसरा विघ्न, आज जो माना जाता है, वह है 'जीन'। जीनेटिक इन्जीनियरिंग में मानव व्यवहार के लिए जीन को उत्तरदायी बतलाया गया। जिस प्रकार का जीन होता है, संस्कार- सूत्र होता है, आदमी वैसा ही व्यवहार करता है। व्यवहार का उत्तरदायित्व जीन पर आरोपित किया गया। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करें तो कर्म- शास्त्रीय भाषा में कर्म का संस्कार और विज्ञान या आनुवंशिकी की भाषा में 'जीन'। ये दोनों बहत निकट आ जाते हैं। इन दोनों को परिवर्तित करना कठिन 'माना जाता है। कर्म-संस्कार और जीन को बदलना सरल काम नहीं है और इसीलिए जगत की यह सारी विविधता है।
एक व्यक्ति बहुत अच्छा व्यवहार करता है, दूसरा बुरा व्यवहार करता है, तीसरा उससे और अधिक बुरा व्यवहार करता है, चौथा और अधिक बुरा व्यवहार करता है। यह अन्तर इसलिए आता है कि सबके
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