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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
उस व्यक्ति के मन में प्रतिक्रिया पैदा हो गई। उसने सोचा यह ऐसे नहीं मानेगा। उसने भी कूड़े-करकट के साथ अपने घर की सारी गंदगी उसके घर के सामने डाल दी।।
यह परिस्थिति से पैदा होने वाली प्रतिक्रिया अहिंसा के सामने बहुत बड़ा विघ्न है।
एक घटना है। पड़ोसी नीचे के फ्लैट में रहता था। वह सिगड़ी जलाता और ऐसे स्थान पर रखता जहां से धुआं ऊपर वाले फ्लैट में जाता। उसे कहा गया तो उत्तर मिला-मैं कुछ भी नहीं कर सकता। धुएं का स्वभाव ऊपर जाने का है। बार समझाने पर भी वह नहीं माना। तब ऊपर वाले ने अपनी फर्श में एक छेद किया। अब गंदी नाली से पानी नीचे आने लगा। नीचे वाले ने शिकायत की, देखो, गंदा पानी नीचे आ रहा है, इतना भी ध्यान नहीं रखते? वह बोला-मैं क्या कर सकता हूं, धुएं का स्वभाव ऊपर जाने का है तो पानी का स्वभाव नीचे जाने का है।
जैसे को तैसा यह प्रतिक्रियात्मक हिंसा है। सामाजिक जीवन में इस प्रकार की स्थितियां बहुत बनती हैं। साम्यवाद की कल्पना या क्रियान्विति सामने आई तब नक्सली बने। अन्यान्य भी जो रक्त-क्रांतियां या हिंसक घटनाएं हुईं उन सबके पीछे प्रतिक्रियात्मक स्थिति ही काम कर रही है। सामाजिक जीवन में जहां इतनी विषमता होती है कि एक व्यक्ति बहुत शानदार ढंग से जीवन जीता है, फिजूल खर्ची करता है, अनावश्यक भोग करता है और धन का अतिरिक्त ढेर लगा देता है। दूसरे व्यक्ति को खाने को रोटी नहीं मिलती, उस स्थिति में प्रतिक्रियात्मक हिंसा को बल मिलता है। यह बहुत स्वाभाविक बात है और जहां भी विश्व के किसी भी कोने में, किसी भी अंचल में, इस प्रकार की घटनाएं घटित हुई हैं, उन सबकी पृष्ठभूमि में प्रतिक्रियात्मक हिंसा काम करती रही है।
एक व्यक्ति के साथ बहुत अन्याय हुआ। कहीं सुनवाई नहीं हुई और वह डाक बन गया। इतना कर डाक बना कि उसने पचासों व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया और न जाने कितनी डकैतियां की। डाकू बनने के पीछे भी बहुत सारी प्रतिक्रियात्मक परिस्थितियां
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