SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प प्रकार के बने हुए हैं। एक बार आचार्य तुलसी के सामने एक प्रश्न आया कि छोटे बच्चों को दीक्षित नहीं करना चाहिए। बड़ा आन्दोलन छिड़ा। उस स्थिति में आचार्यश्री ने कहा-'मैं इस पक्ष में नहीं हूं कि बच्चों को ही दीक्षा दी जाए। किन्तु यह मुझे स्पष्ट लगता है कि छोटे बच्चे जितने योग्य प्रमाणित होते हैं उतने शायद बड़े योग्य प्रमाणित नहीं होते। यह हमारा अनुभव है। मैं केवल अपनी परम्परा की बात आपको बताऊं कि आठ आचार्य हो चुके हैं, आचार्यश्री तुलसी नौवें हैं और दसवां मैं आपके सामने बैठा हूं| इस परम्परा में लगभग १०,११,१२ वर्ष की अवस्था वाले आचार्य हुए हैं । आचार्यश्री ग्यारह वर्ष की अवस्था में मुनि बने, मैं दस वर्ष की अवस्था में मुनि बना। हमारा अनुभव है कि जो छोटी अवस्था में बने, उन्होंने जो साधना का विकास किया और उनके संस्कार जितने उपयोगी बने, बड़ी अवस्था वालों के नहीं बने। कारण स्पष्ट है कि पहले गृहस्थी में उलझे, बाद में मुनि बने, स्मृतियां दोनों तरफ काम करती हैं। इधर मुनि बन गए तो मुनि- धर्म को निभाना है और स्मृतियां अतीत वाली काम करती हैं। वे बंधन बार बार सामने आ जाते हैं । बचपन में संस्कारों की उतनी तीव्रता नहीं होती, बाधाएं नहीं आतीं और नए संस्कारों को, नई आदतों को पैदा करने में बड़ी सुविधा होती है। जब संस्कार रूढ़ हो जाते हैं, अर्जित आदतें जब रूढ़ बन जाती है तब उन्हें तोड़ना हर किसी के वश की बात नहीं होती। कुछ व्यक्ति अपवाद हो सकते हैं कि जो बड़ी अवस्था में भी आमूलचूल बदल सकते हैं, अपनी आदतों को बदल देते हैं, अपने संस्कारों में भी परिवर्तन ला देते हैं। किन्तु इसे मैं साधारण घटना नहीं मानता। बड़ा होने के बाद संस्कारों को बदलना एक विशेष घटना है। छोटी अवस्था में अभिलषित आदत का निर्माण किया जा सकता है, यह बहुत संभव हैं। इसलिए शिक्षा के साथ इसकी बहुत संगति बैठती है कि प्रारंभ से ही बच्चों में वैसी आस्थाओं का निर्माण किया जाए, जिनकी अपेक्षा समाज रखता है और जिन्हें हम सामाजिक मूल्य के रूप में विकसित करना चाहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy