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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
१२७ विकास नहीं कर सकते। यदि सचमुच हमारी आस्था है मूल्यों का विकास करना, सामाजिक मूल्यों को प्रतिष्ठित करना तो हमें पानी वहीं सींचना होगा जिससे कि मूल्यों का विकास संभव बन सके। अन्यथा बात कुछ अटपटी- सी बन जाएगी। समस्या यह है कि अपनी कमजोरी का पूरा अनुभव नहीं होता। आदमी की प्रवृत्ति है कि वह अपनी कमजोरी को छुपाना चाहता है।
एक आदमी अपने मैनेजर के पास जाकर बोला-'यह जो महिला टाइपिस्ट मेरे साथ काम कर रही है, उसे सेवा निवृत्त करना चाहता हूं।' मैनेजर ने पूछा- क्यों छोड़ना चाहते हो?' उसने कहा-'यह ठीक टाइप करना ही नहीं जानती, बार बार अशुद्ध शब्द लिख देती है, बार बार मुझे तंग करती है, पूछती रहती है कि इस शब्द का स्पेलिंग क्या होगा? उस शब्द का स्पेलिंग क्या होगा? मुझे बताने में कितना समय लगाना पड़ता है?' मैनेजर ने कहा-'इतनी छोटी सी बात के लिए उसको छोड़ना क्या ठीक होगा? पूछने में क्या आपत्ति है? तुम्हें पूछती है तो तुम बता दिया करो।' उसने कहा- मैं बार बार बताऊं तो मुझे बार बार डिक्सनरी देखनी पड़ती है। मेरा समय ऐसे ही व्यर्थ चला जाता है।'
कमजोरी तो अपनी है और छोड़ना उसको चाहता है। यह एक बड़ी समस्या है। आदमी यदि अपनी दुर्बलता को ठीक समझ ले तो कोई समाधान मिल सकता है।
__ अहिंसा की चर्चा हजारों वर्षों से हो रही है। उसे आज भी आवश्यक मानते हैं पर उसका विकास नहीं हो पा रहा है। उसका मूल कारण है हमारी दुर्बलता। दुर्बलता यह है कि हम उसके प्रति सच्चे मन से प्रयत्न करना नहीं चाहते। आज हिंसा के पीछे जितनी मानवीय शक्ति खर्च हो रही है उसका एक प्रतिशत भाग भी अहिंसा के पीछे खर्च नहीं हो रहा है। यह बड़े आश्चर्य की बात है। हमारी दुहाई है अहिंसा की और सारी शक्ति का नियोजन हो रहा है हिंसा के पीछे। हर आदमी शांति से रहना चाहता है और उसकी सारी प्रवृत्तियां अशांति को सिंचन दे रही हैं। क्या यह विरोधाभास नहीं है? यह सब क्यों हो रहा है? इसलिए कि बचपन से ही संस्कार दूसरे
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