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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
रसायन कमजोर पड़ता चला जाएगा और विस्मृति की मात्रा बढ़ती चली जाएगी।
प्रश्न है आवृत्ति का, प्रश्न है पल्लवन का और प्रश्न है उसे पोषण मिलने का। हम उन केन्द्रों को यदि पल्लवित करते हैं तो अवश्य ही घृणा की भावना कम होती है और प्रेम का विकास होता है।
प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग है-ज्योति केन्द्र प्रेक्षा । यदि ज्योति- केन्द्र पर हम ध्यान करेंगे और बार बार उसको देखेंगे, बार बार उसका अनुभव करेंगे तो प्रेम, मैत्री और संवेदनशीलता की भावना बढ़ेगी। यदि हमारा ध्यान ज्यादा पेट की ओर जाएगा, नाभि के आस-पास परिक्रमा करेगा तो क्रूरता की भावना, उद्दण्डता और घृणा की भावना को बल मिलता रहेगा। ___आचार्य भिक्षु ने बहुत महत्वपूर्ण बात लिखी। उन्होंने कहाएक व्यक्ति ने दो बीज बोए-एक आम का और दूसरा धतूरे का। दोनों पास- पास में थे। उसने अपने लड़के को कहा कि पौधों को सींचना है। लड़का भोला था, नासमझा था। वह धतूरे के बीज पर बहुत पानी डालता, उसकी रखवाली करता, खूब सार- संभाल करता
और जो आम का पौधा था उसे न पूरा पानी देता, न रखवाली करता, पूरा ध्यान भी नहीं देता। परिणाम यह हुआ कि आम का पौधा मुरझा गया और धतूरे का पौधा चमक उठा।
यह निर्णय हमें करना है कि हम धतूरे के पौधे को ज्यादा पानी दे रहे हैं या आम के पौधे को ? हम किसकी ज्यादा सार-संभाल कर रहे हैं ? जिस पर अधिक ध्यान देंगे, वह ज्यादा विकसित होगा और जिस पर कम ध्यान देंगे, वह सिकुड़ जाएगा।
प्रश्न है कि हमारा ध्यान आज कहां है? ध्यान प्रेम के पौधे पर है या घृणा के पौधे पर ? हम पानी कहां सींच रहे हैं? हमारे लिए यह बहुत ज्वलंत प्रश्न है। पानी तो सींच रहे हैं घृणा के पौधे पर और हम चाहते हैं कि अमन से रहें, शांति से रहें, कहीं आतंक न हो, कहीं हिंसा न हो, लूट-खसोट न हो, अपराध न हो। हमारी कल्पना तो चलती है रामराज्य की और कार्य चलता है रावणराज्य का। संगति कैसे हो? इन विसंगतियों में जीते हुए हम मूल्यों का
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