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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प इसका कारण यह है कि उसका परिवार के प्रति प्रेम है। जहां प्रेम है वहां क्रूर व्यवहार हो नहीं सकता।
यदि चोर व डाक कर ही होते तो उनका परिवार बनता ही नहीं। किन्तु वे अपने परिवार के प्रति बड़े दयालु, बड़े प्रेमालु होते हैं। प्रेम उत्पन्न करना, प्रेम का विकास करना, मैत्री का विकास करना यह अहिंसा का दूसरा तत्त्व है।
प्रेम की बहुत महिमा गाई है हमारे संतों ने । कबीर ने यहां तक लिखा
पोथा पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय। ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।।
आज समस्या यही है कि शिक्षा के साथ संवेदनशीलनता, प्रेम, मैत्री या करुणा के विकास की बात बहुत जुड़ी हुई नहीं है। मैं यह मानता हूं कि केवल शिक्षा या पढ़ाई से ही यह बात आने वाली नहीं है। प्रेम के जो केन्द्र हैं शरीर में, जब तक उनको नहीं छुआ जाता, करुणा के केन्द्रों को नहीं छुआ जाता, तब तक वे विकसित नहीं होते।
इस विषय में यह बात स्पष्ट करना जरूरी है कि हमारे शरीर की रचना बहुत जटिल है, हमारे मस्तिष्क की रचना भी जटिल है। उसे समझे बिना संवेदनशीलता का विकास नहीं हो सकता। घृणा का केन्द्र भी हमारे मस्तिष्क में है और प्रेम का केन्द्र भी हमारे मस्तिष्क में है। दोनों विद्यमान हैं। अब जिसको बल मिलेगा वह पुष्ट हो जाएगा। जिसको बल नहीं मिलेगा वह कमजोर हो जाएगा।
दो लडके हैं। जिस लड़के को प्यार मिलेगा, वह अच्छा बन जाएगा और जिसको तिरस्कार मिलेगा, वह सूख जाएगा। जिस पौधे को प्यार मिलेगा, वह पल्लवित हो जाएगा। जिसे प्यार नहीं मिलेगा, पानी नहीं मिलेगा, जीवन नहीं मिलेगा, वह पौधा सूख जाएगा।
स्मृति पर खोज करने वाले वैज्ञानिक बतलाते हैं कि हमारे स्मृति के रसायन बड़े अद्भुत हैं | एक रसायन को आप हजार बार बल दें वह पुष्ट हो जाएगा और वह बात २०-३० वर्ष तक बराबर आपकी स्मृति में बनी रहेगी। यदि उसको बल नहीं मिलेगा तो वह
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