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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
पढ़ता है और उसके बाहर बेईमानी की घटनाएं देखता है। इस स्थिति में शिक्षा के क्षेत्र में लिए जाने वाले मूल्य- विकास के प्रयत्न कैसे सफल हो सकते हैं ? .
परिस्थितियों, निमित्तों और समाधानों पर ध्यान दिया जा रहा है पर आन्तरिक परिवर्तन या हृदय- परिवर्तन की विधियों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
इन समस्याओं का समाधान जीवन विज्ञान में खोजा जा सकता
पदार्थ- विकास के लिए विज्ञान को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता तो मानसिक शान्ति के लिए अध्यात्म को भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता। हमारा जीवन केवल विज्ञान के आधार पर भी नहीं चल सकता तो केवल अध्यात्म के आधार पर भी नहीं चल सकता। उसमें विज्ञान और अध्यात्म-दोनों के लिए अवकाश है।
जीवन विज्ञान के पाठ्यक्रम में इन दोनों का समावेश किया गया है। दर्शन, अध्यात्म, योग विद्या और कर्मशास्त्र के साथ साथ शरीर विज्ञान, शरीर क्रिया विज्ञान, मनोविज्ञान आदि विद्या- शाखाओं का संतुलन स्थापित किया गया है। इसके पाठ्यक्रम में सिद्धान्त और प्रयोग दोनों संतुलित हैं।
जीवन-विज्ञान में सिद्धान्त और प्रयोग दोनों संतुलित हैं, इसलिए इसके द्वारा नैतिक मूल्यों से विकास की संभावना की जा सकती है। प्रयोग- शून्य सिद्धान्त के द्वारा उनके विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। स्वभाव निर्माण के लिए प्रयोग नितान्त आवश्यक है । अभ्यास के अभाव में आदमी जानता हुआ भी अनजान- सा बना रहता है। जीवन-विज्ञान में प्रयोग की अनिवार्यता स्वीकार की गई है। इस दृष्टि से यह मूल्य- विकास का एक महत्त्वपूर्ण उपाय हो सकता है।
जीवन विज्ञान के संबंध में कुछ सामान्य जिज्ञासाएं की जाती हैं। उनका आकलन इस प्रकार है
१. जीवन विज्ञान का आधार क्या है?
चरित्र- निर्माण, अहिंसा और सामाजिक न्याय के लिए आस्था या प्रेम का बिन्दु नितान्त आवश्यक है। राष्ट्र या अन्य किसी आदर्श
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