SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११७ जीवन विज्ञान : सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास का संकल्प के प्रति समर्पण का भाव आस्था उत्पन्न करता है। जीवन विज्ञान की पद्धति में आन्तरिक मूल्यों के प्रति आस्था उत्पन्न की जाती है और वही आस्था सहज भाव से चरित्र का निर्माण करती है, व्यवहार में परिवर्तन लाती है। २. जीवन-विज्ञान का विद्यार्थी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता जीवन- विज्ञान के प्रयोगों द्वारा एकाग्रता, स्मृति, धारणा- शक्ति और संकल्प-शक्ति का विकास होता है। ये मूल्यवान् हैं, पर इनसे अधिक मूल्यवान् है जीवन व्यवहार का परिवर्तन । सहिष्णुता, अनुशासन, दायित्व- बोध आदि का विकास बौद्धिक विकास के साथ अत्यन्त अपेक्षित है। हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले व्यवहार रसायनों से नियंत्रित होते हैं। आन्तरिक प्रयोगों के द्वारा रासायनिक संतुलन स्थापित किया जा सकता है। उससे व्यवहार में परिवर्तन हो जाता है। इस पद्धति से विद्यार्थी के व्यवहार का परिवर्तन देखा गया है। ३. अभिभावक और शिक्षक के बदले बिना क्या विद्यार्थी बदल पाएगा? __ अणुव्रत आन्दोलन ने शिक्षा के क्षेत्र में त्रिकोणात्मक अभियान शुरू किया था। अभिभावक, शिक्षक और विद्यार्थी-यह एक त्रिकोण है। इसका एक साथ बदलना जरूरी है। पूरे समाज में चरित्र का विकास हो; तभी विद्यार्थी में चरित्र का विकास हो सकता है, इस अवधारणा को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किन्तु चरित्र- निर्माण की प्रक्रिया का प्रारंभ कहां से हो, यह एक विमर्शनीय बिन्दु है। विद्यार्थी के संस्कार अपरिपक्व होते हैं, इसलिए उसमें चरित्र का बीज बोना जितना सरल है उतना परिपक्व वय वाले मनुष्य में नहीं होता। नैतिक- मूल्य, सम्प्रदाय-निरपेक्षता, लोकतन्त्रीय समाजवादी समाज व्यवस्था, जाति-भेद ओर रंग-भेद की भावना से मुक्ति, इन सब का विकास बचपन से ही जितनी सरलता से किया जा सकता है उतना बाद में नहीं किया जा सकता। इसलिए शिक्षा को केवल बौद्धिक विकासपरक नहीं, किन्तु भावनापरक भी होना चाहिए। ४. क्या शिक्षकों का जीवन विज्ञान की पद्धति से भावात्मक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy