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________________ १११ जीवन विज्ञान : मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रणाली दीनता/हीनता रूखा असफलता छिद्रान्वेषण आलसी रुग्णता अहं डांवाडोल दरिद्रता आग्रह धोखेबाज . थकावट द्वेष स्वार्थी ऊब, असंतोष आदि आदि आदि आदि आदि आदि जीवन विज्ञान के द्वारा विधेयात्मक भाव का विकास कर निषेधात्मक भाव से मुक्ति पाई जा सकती है। तनाव की अवस्था में ग्रहणशीलता और स्मृति प्रभावित होती है। जीवन विज्ञान तनाव- मुक्ति की प्रक्रिया है। इससे ग्रहण की क्षमता बढ़ती है, स्मृति का संवर्धन और बौद्धिक विकास होता है। विद्यार्थी को कायोत्सर्ग (शिथिलीकरण) की अवस्था में पढ़ाया जाए तो वह अपने विषय को शीघ्र ग्रहण कर सकता है। यह शिक्षा की 'सद्योग्रहण' पद्धति है। इसमें विद्यार्थी को तन्द्रा की अवस्था में ले जाना और अध्यापक द्वारा पाठ का लयबद्ध उच्चारण करना बहुत अपेक्षित है। वह उच्चारण सुझाव (सजेशन) के रूप में प्रस्तुत किया जाए। इसमें संदेश- पद्धति बहुत उपयोगी सिद्ध हुई है। उसके द्वारा चेतन और अचेतन मन के बीच संवाद स्थापित किया जा सकता है। स्मृति- संवर्धन और ग्रहण-क्षमता का मौलिक आधार है-लयबद्ध श्वास । लयात्मक श्वास के द्वारा मस्तिष्क को पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाती है। जब मस्तिष्क कार्यरत होता है, तब उसे शरीर से तिगुने ऑक्सीजन की जरूरत होती है। लयबद्ध श्वास के द्वारा मानसिक और भावनात्मक तनाव कम होता है और ध्यान अपने भीतर की ओर आकर्षित होता है। पाठ पढ़ते समय श्वास का संयम (कुम्भक) हो तो वह अधिक प्रभावी बनता है। जीवन विज्ञान मस्तिष्क प्रशिक्षण की पद्धति है। इसके तीन अंग १. संवेद- नियंत्रण पद्धति २. संवेग- नियंत्रण पद्धति ३. विचार- नियंत्रण पद्धति। इसके साध्य तत्त्व सात हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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