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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प
१. श्वास नियंत्रण २. शरीर नियंत्रण ३. चैतन्य- केन्द्र नियंत्रण ४. स्वभाव परिवर्तन ५. आभामंडलीय निर्मलता ६. सामुदायिक चेतना का विकास ७. रचनात्मक शक्ति का विकास ।
इसके साधक तत्त्व पांच हैं
१. श्वास- प्रेक्षा २. शरीर- प्रेक्षा ३. चैतन्य- केन्द्र- प्रेक्षा ४. अनुप्रेक्षा (संदेश और अनुचिन्तन) ५. लेश्या-ध्यान (आभामंडल का ध्यान)।
अनुप्रेक्षा मस्तिष्क प्रशिक्षण की प्रक्रिया है। उसमें पुनरावृत्ति की जाती है। संस्कार निर्माण के लिए एक मास से तीन मास तक प्रतिदिन ५० से १०० आवृत्तियां की जाती हैं। शिक्षण के लिए ३२ से ५० आवृत्तियां करना आवश्यक है।
मस्तिष्क प्रशिक्षण प्रणाली के द्वारा मस्तिष्क और शरीर को प्रतिदिन नियिन्त्रत (सूचना द्वारा सूचित या निर्दिष्ट) कर स्वास्थ्य को नियमित किया जा सकता है।
इसके द्वारा व्यवसाय, खेलकूद, अन्तरिक्ष यात्रा, समुद्र यात्रा, पर्वतारोहण आदि विभिन्न क्षेत्रों में कठिन प्रतीत होने वाले कार्य सरलतापूर्वक किये जा सकते हैं। इस प्रणाली के द्वारा अन्तः प्रज्ञा (इन्ट्यूशन) को विकसित कर अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिये जा सकते हैं । व्यवसाय- प्रबन्धक, राजनयिक, प्रशासन तंत्र के अधिकारी, न्यायाधीश और कार्यपालिका के सदस्य-ये सभी इनसे लाभान्वित हो सकते हैं। पुलिस और सेना के लिए भी इसका बहुत मूल्य है। एकाग्रता, संकल्पशक्ति, नियन्त्रण की क्षमता और स्वभाव की पुनर्रचना-ये जीवन की उपलब्धियां हैं। जीवन विज्ञान के प्रयोग द्वारा इन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
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