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________________ १०५ बुद्धि और अनुभव का संतुलन जीवन विज्ञान की प्रक्रिया की मूल फलश्रुति है दृष्टिकोण का परिवर्तन । भावात्मक रूपान्तरण उसका मूल उद्देश्य है। गौण रूप से उससे शरीर भी स्वस्थ होता है, साइकोसोमेटिक बीमारियां दूर होती हैं, अन्य प्रासंगिक लाभ भी होते हैं। दृष्टिकोण बदल सकता है, यह हमारी आस्था है। जीवन विज्ञान ने इस आस्था को जगाया है। यह आस्था भी दृढ़मूल हुई है कि आदत, स्वभाव और व्यवहार में भी परिवर्तन आ सकता है। प्राचीन आचार्यों ने प्रत्येक वृत्ति को बदलने के लिए भिन्न-भिन्न उपाय निर्दिष्ट किए हैं। वे इधर-उधर बिखरे पड़े हैं। खोजने वालों को वे प्राप्त होते हैं। अनेक व्यक्तियों ने वे प्रयोग किए, परिणाम अच्छे आए और वे प्रयोग उन- उन वृत्तियों के परिष्कार के लिए निर्दिष्ट हो गए। यह क्रम पहले शिक्षा के साथ नहीं जुड़ा था, सामान्य आदमी के साथ जुड़ा था। उसमें सफलता मिली। आज नैतिकता के लिए शिक्षा में परिवर्तन हो रहा है। हमने सोचा. मनन किया, भारत सरकार के शिक्षामंत्री तथा राजस्थान सरकार के शिक्षामंत्री से विचार विमर्श हुआ। हमारा विचार था कि पुस्तक पढ़ाने मात्र से नैतिक बन जाए, ऐसा संभव नहीं लगता। हमने प्रयोगों की चर्चा की, उनका एक्सपेरिमेंट हुआ, अच्छे परिणाम आए आज हम जीवन-विज्ञान की पद्धति को शिक्षा जगत् का दिशासूचक यंत्र मान सकते हैं। जीवन विज्ञान के लिए एक शक्तिशाली वातावरण बना है। अच्छे अच्छे व्यक्ति इसके साथ जुड़े हैं। आत्मविश्वास बढ़ा है। कमजोर आंदमी कुछ नहीं कर सकता। शक्तिशाली ही कुछ कर सकता है। शक्ति चाहिए। कमजोर व्यक्ति केवल भीख मांग सकता है। शक्ति की पूजा के बिना कुछ नहीं होता। ___ जीवन विज्ञान शिक्षा की पूरक कार्य- पद्धति है। शिक्षा में जो भावात्मक परिवर्तन तथा चरित्र-निर्माण का पक्ष गौण है, उसकी यह पूर्ति करती है। यह अभिमत पुस्तकों के आधार पर नहीं बना है, किन्तु अनुभव के आधार पर बना है। अनुभव बुद्धि से परे होता है अहंकारो धियं ब्रूते, नैनं सुप्तं प्रवोधय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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