________________
बुद्धि और अनुभव का संतुलन
हम अपनी जीवन की धारा को दो तटों क बीच चला रहे हैं। एक है समस्या का तट और दूसरा है अपेक्षा का तट । अनेक समस्याएं हैं, जैसे-हिंसा, तनाव, अनैतिकता, मिथ्या दृष्टिकोण आदि। इनमें सबसे बड़ी समस्या है-मिथ्या दृष्टिकोण।
अब इनके लिए अहिंसा की अपेक्षा है। हिंसा बहुत बढ़ गई है। मनुष्य का दृष्टिकोण बन गया कि समस्या का समाधान हिंसा में है। वह हिंसा को चुनता है। उसने हिंसा को ऐसा हथियार बना लिया है कि कहीं पर भी उसका उपयोग किया जा सकता है। हिंसा सर्वत्र व्याप्त है। प्रत्येक क्षेत्र, फिर चाहे वह राज्य का हो, राजनीति का या शिक्षा का हो, में हिंसा का बोलबाला है। आज अहिंसा की अपेक्षा है। पर प्रश्न होता है कि वह आए कैसे? इसके लिए आवश्यकता है दृष्टिकोण को बदलने की, चक्षुष्मान् बनने की। आज आंख की परम आवश्यकता है। अन्यान्य वस्तुएं मिल सकती हैं पर आंख का मिलना, दष्टि का मिलना अत्यन्त कठिन है। आजकल आंख का प्रत्यारोपण होने लगा है, चक्षुदान भी प्रचलित है इसीलिए आंख मिलने लगी है। आदमी को चक्षुष्मान् बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई है पर काम कठिन
है।
एक बालक भीख मांग रहा था। वह अंधा था। एक युवक ने उसको चवन्नी दी और कहा-'बच्चे ! अभी से भीख मांगने लग गए? तुम अंधे हो। तुम्हारे आंखें नहीं हैं। तुम पैसा क्यों मांगते हो, आंखें क्यों नहीं मांग लेते?' उसने कहा--'भाई साहब ! आप ठीक कहते हैं जिसके पास जो हो, वही तो मांगता हूं। लोगों के पास पैसा है, आंखें नहीं हैं। फिर मैं उनसे आंखें कैसे मांगू?'
तीर्थंकर का एक विशेषण है--चक्खुदयाण-चक्षुदाता, चक्षु देने वाले। दृष्टिकोण का बदलना ही चक्षुष्मान् होना है। हिंसा, नैतिकता
आदि सारी समस्याएं दृष्टिकोण के कारण उभर रही हैं। यदि दृष्टिकोण बदल जाए तो सारी समस्याओं का समाधान भी प्राप्त हो जाए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org