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विद्यार्थी जीवन और ध्यान
१०३ की चेतना पैदा होती है। हम एकाग्रता से चले और एकाग्रता पर आकर स्थापित हो गए। हमने श्वास का आलम्बन लिया और उसके स्वरूप को जानने के लिए विचार प्रारंभ किया। फिर उसमें प्रीति पैदा हुई। वह अच्छा लगने लगा। फिर सुख मिला। जब सुख मिलने लगा तो उसमें एकाग्रता होने लगी। यह एक प्रक्रिया है, सत्य की खोज का मार्ग है। यदि विद्यार्थी में प्रारंभ से ही यह वृत्ति पैदा कर दी जाए तो उसका जीवन सफल हो सकता है।
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