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________________ जीवन विज्ञान : रवस्थ समाज रचना का संकल्प खोला। सामने भंट में सजाए हुए थाल पड़े थे। संन्यासी को प्रणाम कर राजा बोला-महाराज ! मैं आपकी शरण में आया हूं| आप कृपाकर आर्शीवाद दें। मेरे राज्य का विस्तार हो. मेरा भण्डार बढ़े। मेरा परिवार बढ़े। मेरी यश और कीर्ति बढ़े। आप मेरी ये मांगे पूरी करें | मेरी भेट आप स्वीकार करें। संन्यासी बोला--मैं तुम्हारी भेंट नहीं ले सकता, क्योंकि मैं केवल दाता की भेंट लेता है। भिखारी की नहीं। राजा बोला-आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं राजा हूं, भिखारी नहीं हूं। संन्यासी ने कहा-अरे, अभी अभी तुम याचना कर रहे थे, मांग कर रहे थे। मांगने वाला दाता नहीं होता, भिखारी होता है। साक्षरता से अक्षर- ज्ञान तो हो जाता है, पर शिक्षित होने के लिए और अधिक बातें अपेक्षित होती हैं। जब सुख का साक्षात्कार होता है तब दुःख बहुत कम हो जाता है। प्रायः लोग सोचते हैं कि संसार में दुःख अधिक है। मैं इस भ्रान्ति की तोड़ना चाहता हूं। समस्याएं दो प्रकार की होती हैं-यथार्थ और काल्पनिक । रोटी, कपड़े और मकान की समस्याएं यथार्थ हैं। जीवन यापन की समस्या भी यथार्थ है। हम सोचें कि यथार्थ की समस्या का दुःख कितना है और काल्पनिक समस्या का दुःख कितना है। हम लेखा-जोखा करें तो ज्ञात होगा कि काल्पनिक समस्याएं अधिक होती हैं। हम दुःख का भार न ढोएं। जो दुःख का भार नहीं ढोता, वह समस्याओं से आक्रान्त नहीं होता। समस्या के समाधान का उपाय है-श्रमनिष्ठा, उत्पादक श्रम । यदि विद्यार्थी में श्रमनिष्ठा और उत्पादक श्रम की मनोवृत्ति जागती है तो समस्या का समाधान होता है। यदि वह नहीं जागती है तो अनेक काल्पनिक समस्याएं और जुड़ जाती हैं। आदमी में उत्पादक श्रम के प्रति कम निष्ठा है और फिजूल कार्य के प्रति अधिक उत्साह है। यदि शिक्षा जगत् इस मनोवृत्ति को बदल कर उत्पादक मनोवृत्ति पैदा कर सके तो उसका बहुत बड़ा अवदान हो सकता है। इसको बदला जा सकता है एकाग्रता और विधायक भाव के द्वारा। इन्हीं के द्वारा यह चेतना पैदा की जा सकती है। यह सुख की चेतना है। ध्यान का पांचवां अंग है-'एकाग्रता' । सुख के बाद एकाग्रता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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