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जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प उदिते परमानन्दे, नाहं न त्वं न वै जगत्।।
अहंकार ने बुद्धि से कहा-अनुभव को मत जगाओ। उसके जाग जाने पर, न मैं रह पाऊंगा, न तुम रह पाओगी और न फिर संसार ही रह पाएगा।
बुद्धि से परे होता है अनुभव। अनुभव के जाग जाने पर अनैतिकता का जगत् नहीं बचता। आज सारे लोग यही चाहते हैं कि अनुभव सोया ही रहे, बुद्धि जागती रहे । सारा भार बुद्धि पर लादा हुआ
है।
___ आज जितने अनपढ़ मूर्ख हैं, उनसे अधिक हैं पढ़े-लिखे मूर्ख । आवश्यकता है कि तराजू के दोनों पलड़ों में समान वजन रखा जाए। बुद्धि और अनुभव का संतुलन होना आवश्यक है। अनुभव को जगाना अत्यन्त जरूरी है।
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