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________________ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प कुछ समय बीता। कबीर युवक को साथ ले जंगल में गए। वहां नब्बे वर्ष का संन्यासी रहता था। कबीर संन्यासी की कुटिया में गए। संन्यासी को प्रणाम कर पूछा-आपकी अवस्था कितनी है? संन्यासी बोला-मैं ६० वर्ष का हूं। कबीर वहां से कुछ दूर गए और पुनः लौट कर संन्यासी से पूछा--महात्मन् ! आपकी अवस्था कितनी है? संन्यासी ने फिर वही उत्तर दिया। तीसरी बार पुनः कबीर ने पूछा- आपकी उम्र कितनी है। संन्यासी ने उसी प्रेमभाव से उत्तर दिया। कबीर ने पांच- सात बार वही प्रश्न पूछा और संन्यासी ने उसी शांतभाव से उत्तर दिया । यदि कोई दूसरा होता तो शीतलप्रसाद का ज्वालाप्रसाद बन जाता। कबीर ने युवक से पूछा-मिल गया उत्तर तुम्हारे प्रश्न का? युवक बोला-मैं तो कुछ भी नहीं समझ पाया। कबीर बोले-यदि तुम गृहस्थी बसाना चाहो तो वैसे बनो कि दुपहरी में भी चिराग जलाने को कहने पर पत्नी ननुनच न करे और चिराग जलाकर रख दे। यदि तुम संन्यासी बनना चाहो तो ऐसे संन्यासी बनो कि क्रोध आए ही नहीं। जब विधायक भाव की प्रबलता होती है तब जीवन में आनन्द ही आनन्द होता है, सुख ही सुख होता है। घटनाओं के साथ सुख-दुःख का संबंध नहीं है। भ्रान्ति के कारण हम मानते हैं कि प्रिय घटना से सुख होता है और अप्रिय घटना से दुःख होता है। भारतीय दर्शनों ने इस भ्रान्ति को तोड़ने का प्रयत्न किया है। सुख- दुःख हमारी आन्तरिक अवस्था है। सुख- दुःख को पदार्थ के साथ जोड़ना बहुत बड़ी भ्रान्ति है। अध्यात्ग की खोज ने हमें बहुत बड़ा संबल दिया था, किन्तु आज वह शैक्षणिक जगत् का उपक्रम नहीं रहा, इसलिए दृष्टिकोण बदल गया। आज की यह बहुत बड़ी शिकायत है कि आदमी का दष्टिकोण भौतिकवादी बन गया है और यही सारी समस्याओं का मूल है। प्रश्न है यह दृष्टिकोण क्यों बना? किसने बनाया? बनाने का दायित्व किस पर है? दायित्व दो पर ही है-धर्म और शिक्षा जगत् पर। तीसरे पर यह दायित्व नहीं आता। दृष्टिकोण का निर्माण या तो धर्म के आधार पर होता है या शिक्षा के आधार पर। दृष्टिकोण का निर्माण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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