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विधायक भाव
व्यक्ति विकासशील बनता है जिसे विधायक भाव उपलब्ध है। जिसमें निषेधात्मक भाव हैं, वह समाज या व्यक्ति कभी विकास नहीं कर सकता। उसमें सदा निराशा बनी रहती है। वैसे व्यक्ति उदासी और बेचैनी से ग्रस्त होते हैं। ये व्यक्ति प्रत्येक बात में कमी निकालेंगे, बुराई खोजेंगे।
कृष्ण ने युधिष्ठर और दुर्योधन से कहा कि द्वारका में अच्छे आदमी कितने हैं और बुरे आदमी कितने हैं, इनकी सूची बनाकर लाओ। कुछ दिन बीते। दोनों व्यक्ति कृष्ण के पास आए। दोनों के पन्ने खाली थे, उन पर कुछ भी लिखा हुआ नहीं था। दुर्योधन ने कहा-'महाराज ! मैं पूरे नगर में घूमा, पर मुझे एक भी अच्छा आदमी नहीं मिला, इसलिए मैं क्या लिखता?' युधिष्ठिर ने कहा- 'महाराज ! मेरी भी यही समस्या है। मै भी नगर में खूब घूमा, पर मुझे एक भी बुरा आदमी नहीं मिला ! अब मैं क्या लिखता?'
दुर्योधन का उत्तर निषेधात्मक भाव का प्रतीक है और युधिष्ठिर का उत्तर विधायक भाव का प्रतीक है। विधायक दृष्टिकोण से संपन्न व्यक्ति को बुराई नहीं दीखती और निषेधात्मक दृष्टि वाले व्यक्ति को अच्छाई का पता नहीं चलता। जहां निषेधात्मक दृष्टि होती है वहां कलह, संघर्ष और लड़ाइयां पैदा होती है।
__ व्यक्ति के भाव ही अच्छाई और बुराई के लिए, सुख-दुःख के लिए जिम्मेवार हैं। यदि प्रारंभ से ही भावों को सही दिशा मिल जाए तो शायद सुख का सागर हिलोरें लेने लग जाए।
कबीर के पास एक युवक आकर बोला-'आप बड़े अनुभवी हैं। मुझे एक परामर्श दें कि मैं गृहस्थी में रहूं या संन्यासी बन जाऊं?' कबीर ने कहा-थोड़ी देर बैठो। मैं फिर बताऊंगा।
थोड़ा समय बीता। मध्यान्ह की बेला थी। कबीर ने अपनी पत्नी को बुलाया। पत्नी उपस्थित हुई। कबीर ने कहा-'दीपक जलाकर लाओ।' पत्नी तत्काल गई और दीपक जलाकर ले आई।
युवक ने सोचा, सूरज तप रहा है। सर्वत्र प्रकाश है। फिर दीपक का क्या प्रयोजन है? कैसा आदमी है कबीर? मुझे क्या मार्गदर्शन देगा?
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