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विधायक भाव या तो धर्मगुरु करते हैं या शिक्षक । भौतिकवादी दृष्टिकोण इसलिए बना कि आदमी ने सत्य की उपेक्षा की। यदि सत्य को समझने का और समझाने का प्रयत्न किया होता तो दृष्टिकोण की समस्या को सुलझाने में बड़ा सहयोग मिलता। आज जो समस्या नहीं सुलझ रही है उसका कारण है मिथ्या- दृष्टिकोण।
आज के धार्मिक का दृष्टिकोण भी गलत है, क्योंकि वह मान बैठा है कि सब कुछ धर्म से हो जाएगा। यह बहुत बड़ी भ्रान्ति है। धर्म से सब कुछ कैसे होगा? धर्म से केवल मानसिक शांति मिल सकती है, आनन्द और सुख मिल सकता है। हमने मान लिया कि धर्म से पदार्थ मिलते हैं, सुख-सुविधाएं मिलती हैं। यह दृष्टिकोण की विपरीतता है। हमें मानना चाहिए कि धर्म की एक सीमा है और पदार्थ
की भी एक सीमा है। पदार्थ से सुविधा मिलती है और धर्म से आनन्द मिलता है, आन्तरिक शांति मिलती है, मन शांत होता है। यदि यह दृष्टिकोण स्पष्ट हो तो धर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी, पदार्थ की मूर्छा घटेगी और भौतिकता की दौड़ कम होगी। यही विधायक भाव की निष्पत्ति है। शिक्षा जगत यदि विद्यार्थियों को विधायक भावों के प्रति शिक्षित कर सके तो बहुत बड़ा कार्य हो सकता है। यह कार्य प्रारंभ से ही करने का है। बच्चे विधायक भावों को जब पकड़ लेते हैं, तब उनके संस्कार अच्छे बनने में विलंब नहीं होता। विधायक भावों का विकास होने पर शिक्षा जगत की अनेक समस्याएं स्वयं समाहित हो जाएंगी।
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