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________________ जीवन विज्ञान : स्वस्थ समाज रचना का संकल्प आए । चर्चा चली कि वैज्ञानिकता और बौद्धिकता का इतना विकास होने पर भी नैतिकता और चरित्र की समस्या क्यों है? आज का वैज्ञानिक छोटी-मोटी बात में उलझ जाता है और आत्महत्या जैसा जघन्य कार्य भी कर लेता है । यह शिक्षा के सामने बहुत बड़ा प्रश्न है । आखिर शिक्षा की निष्पत्ति क्या है? क्या आत्महत्या ही शिक्षा की निष्पत्ति है? सोचने-समझने पर यही निष्कर्ष निकलता है कि बौद्धिक विकास के हो जाने पर भी भावात्मक विकास के अभाव में जघन्यतम अपराध घटित हो सकता है। भावात्मक विकास का ज्वलंत प्रश्न सबके सामने है | " भारत के ऋषि- महर्षियों ने आचार्यों ने व्यक्तित्व के रूपान्तरण के लिए, उच्च चेतना को जगाने के लिए अनेक उपाय खोजे थे । उन्होंने शरीर पर बहुत ध्यान दिया, क्योंकि शरीरतंत्र मुख्य तंत्र है । चेतना भी तो शरीर के भीतर ही है। शरीर के बिना चेतना की अभिव्यक्ति कहां हो सकती है? उन्होंने शरीर में ऐसे केन्द्र खोजे जहां व्यक्ति के बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। ऐसे दो-चार नहीं, सैंकड़ों केन्द्र खोजे गए, जिनके द्वारा वृत्तियों का परिवर्तन किया जा सकता है, स्वभाव को बदला जा सकता है। ६४ श्वासप्रेक्षा, शरीरप्रेक्षा और चैतन्यकेन्द्रप्रेक्षा - ये तीनों रूपान्तरण घटित करने के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । सिद्धान्ततः हम इन्हें जानते हैं, पर इनका अभ्यास बहुत जरूरी है। पति - पत्नी जा रहे थे। रास्ते में एक भिखारी मिला। उसने कुछ मांगा। पति ने जेब में हाथ डाला, पर जेब में कुछ था नहीं । इनमें इतनी उदारता थी कि कोई मांगे और कुछ न दिया जाए तो वे खिन्नता का अनुभव करते थे। उनके हाथ में एक थैला था । उसमें चांदी का कटोरा था। पति ने भिखारी को वह कटोरा दे दिया । पत्नी ने कहा- अरे, यह क्या कर डाला? भिखारी को चांदी का कटोरा दे दिया ! भिखारी को चांदी का कटोरा दे दिया! पति ने कहा- मैंने तो देखा ही नहीं कि कटोरा चांदी का है या पीतल का । चांदी का था तो अच्छी बात है। मैं यह अभ्यास कर रहा हूं कि मेरे हाथ से यदि कीमती चीज भी चली जाए तो कोई हैरानी, खिन्नता न आए। जो दे दिया, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003160
Book TitleJivan Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2008
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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