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जीवन विज्ञान और मस्तिष्क प्रशिक्षण
श्वास के साथ पाठ करना, उच्चारण करना छूट गया ।
प्राणायाम मस्तिष्कीय विकास के लिए अनिवार्य प्रक्रिया है । इससे मस्तिष्क के सुप्त और निष्क्रिय केन्द्र जागृत और सक्रिय होते हैं ।
लयबद्ध श्वास से मस्तिष्क की सुप्त शक्तियां जागती हैं । सारा तंत्र उससे प्रभावित होता है । लयबद्ध चलना, बोलना, श्वास लेना - ये शक्ति जागरण के प्रेरक तत्त्व हैं। जीवन विज्ञान की प्रणाली में इसको बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया है। सुपर लरनिंग पद्धति में भी इनका समावेश है ।
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जीवन विज्ञान की पद्धति के तीन मुख्य आधार हैं- कायोत्सर्ग, समवृत्ति - श्वास और अनुप्रेक्षा । पश्चिमी जगत् में जिसे सजेशन, ऑटो- सजेशन कहा जाता है, वह अनुप्रेक्षा का ही रूप है। चिकित्सा के क्षेत्र में पहले सजेशन का प्रयोग होता था । आजकल सम्मोहन का प्रयोग होने लगा है। आज शल्य चिकित्सक एनेस्थेसिया का प्रयोग करते हैं । कुछेक शल्य-चिकित्सक सम्मोहन के द्वारा बड़े बड़े ऑपरेशन कर देते हैं। इससे न बीमार व्यक्ति को कोई कष्ट होता है और न डॉक्टर को । संदेश देना, सुझाव देना, अनुप्रेक्षा करना, भावना से भावित करना - ये सब भारतीय योगविद्या के अंग हैं। इनसे मस्तिष्क की शक्तियों को जगाया जा सकता है। इनके प्रयोग हुए हैं और सुपर लरनिंग वालों ने इनसे लाभ उठाया है ।
पश्चिम जर्मनी का एक डॉक्टर सामुद्रिक यात्रा पर निकला । नब्बे दिन की यात्रा थी । उसने यात्रा के पहले दिन से ही ऑटो - सजेशन देना प्रारंभ कर दिया कि मुझे उस किनारे पर पहुंचना है। उसने इस वाक्य को जाप का - सा रूप दे दिया । अनेक कठिनाइयों के उपरांत भी वह सकुशल उस किनारे पर पहुंच गया। उसे अपनी पहुंच पर स्वयं को आश्चर्य हुआ ।
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हम जिस भावना से अपने मन को भावित करेंगे, वह घटना अवश्य घटित होगी। राजस्थानी भाषा में एक कहावत है- रोतो रोतो जावै तो मरियेड़ा की खबर ले आवै जो रोते रोते जाएगा, वह मरे हुए की खबर लेकर ही आएगा जो संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ
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