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६२ / नए मंदिर : नए पुजारी वाहर निकाल कर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे। चारों ओर से काफी कुत्ते इक्कठे हो गए थे। उनमें से कुछ बड़े थे तो कुछ छोटे । कुछ ताकतवर थे तो कुछ कमजोर । वे रोटी के टुकड़ों की इतनी आतुरता से प्रतीक्षा कर रहे थे, मानो फुटबाल के खिलाड़ी आउट हुए गेंद के शो की प्रतीक्षा कर रहे हों। __मालिकन ने सबसे पहले एक मोटा टुकड़ा उस कुत्ते की ओर फेंका जो अक्सर रात में उसके मकान के सामने सोया करता था। जब भी कोई अजनबी उधर से निकलता तो वह स्वामी भक्ति का इजहार करता हुआ भौंकने लगता। यदि कोई अजनबी मकान में प्रवेश करने की कोशिश करता तो वह उसके गले ही पड़ जाता था। शायद इसलिए उसे पहले-पहल रोटी का टुकड़ा फैंकने में मालकिन ने सबसे ज्यादा पुण्य समझा । पर ज्योंही रोटी का टुकड़ा इस कुत्ते के सामने गिरा सारे कुत्ते उसी ओर झपट पड़े । वह भी कमजोर तो था नही, अत: बड़ी तत्परता से उसने उस टुकड़े को अपने मुंह में दबोच लिया। मालकिन ने देष कत्तों के ध्यान को उस ओर से हटाने के लिये एक दूसरा टुकड़ा फैका । अब सारे कुत्ते दूसरे टुकड़े की ओर मुड़ गये। उसके लिए आपस में छीनाझपटी होने लगी।
एक मरियल-से कुत्ते ने सबसे पहले उस टुकड़े को अपने मुंह में दबोच लिया, क्योकि वह उसके ही मुंह के आगे आकर गिरा था। पर दूसरे ही क्षण एक तगड़ा कुत्ता उसकी ओर झपटा और उसके मुंह से टुकड़ा छीन लिया अब धीरे धीरे और भी टुकड़े फैके जाने लगे, पर वे सब उन्हीं के पास पहुंच जाते थे जो तगड़े थे । कमजोर कुत्तों के हाथ यदि बे आये भी तो न जाने उन्हें तगड़े कुत्तों के कितने दांत व पँजों के प्रहार सहने पड़े । बल्कि इस छीना-झपटी में विचारे कुछ कमजोर कुत्तों की तो इतनी मरम्मत हुई कि वे तो खाली पेट ही भीड़ से निकल कर एक ओर खड़े हो गए। कोई अपनी टूटी टांग को अधर से लटकाये लडखड़ाता हुआ चल रहा था तो कोई दर्द के मारे 'चें-चें' कर रहा था। यद्यपि रोटी पाने की उनकी लालसा अभी मरी नहीं थी। फिर भी वे पूछ हिलाते हुए आऊट हुए खिलाड़ी की भांति एक ओर खडे तमाशा देख रहे थे।
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