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________________ बासी टुकड़ों का पुण्य मैं बिना किसी प्रयोजन के खिड़की के पास खड़ा था। अनेक दृश्य मेरी आंखों के सामने आ रहे थे। पास के नीम पर कौआ कर्कश स्वर में कांव-कांव कर रहा था। कीचड़ में बैठा सूअर-परिवार आनन्द मग्न होकर किलोल कर रहा था। कहीं छोटे-बड़े कुत्ते गली के बीच अांखें मूंदे आलस्य से ऊंघ रहे थे। कुछ पनिहारिनें पानी लेकर लौट रही थीं। दूर मंदिर में घण्टा बज रहा था। अवचेतन मन की हांडी में न जाने और भी क्या पक रहा था कि अचानक मेरा चेतन मन पड़ोस के मकान के दरवाजे की ओर खिच गया। एक साथ अनेक कुत्ते उसी ओर दौड़ रहे थे । मकान-मालकिन हाथ में बासी रोटियां लिये 'तू-तू' कर कुत्तों को बुला रही थी। शायद यह बात मेरे ध्यान में नही आती, क्योंकि वह दरवाजा मेरे नीचे की ओर था, पर ज्योंही कुत्ते उस निमंत्रण को सुनकर दावत खाने दौड़े तो मैं नीचे की ओर झुक गया। अब मैं स्पष्ट देख रहा था कि मकान-मालकिन बड़े संतोष भाव से कुत्तों को वह बासी दान देने की तैयारी कर रही थी। मैं सोचने लगा--विविधता भरे इस वातावरण में प्राणी अपने आवश्यक संकेत को कितनी तत्परता से ग्रहण करता है और कितना सस्ता है यह पुण्य ! कुछ रोटी के टुकड़े बच गये, उन्हें ही लेकर मालकिन स्वर्ग की राह में बिखेरने लगी । यदि इतने से टुकड़ों से स्वर्ग मिल जाय तो उसे खो देना दुर्भाग्य ही होगा। मैं इस दर्शन और गणित में उलझ रहा था, पर कुत्ते इस अनुकम्पा के लिये अवश्य ही हृदय से आशीर्वाद दे रहे थे। वे अपनी पूंछ हिला-हिला कर ललचाई दृष्टि से लम्बी जीभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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