________________
कानून की मौत / ८६
की व्याख्या करें ?
बियाणी - ऐसा लगता है, जैसे आप पर भी आजकल कम्युनिज्म का नशा चढ़ने लगा है, या फिर लगता है, आपने कोई सत्संगति ज्वाइन कर ली है, जो इतना अच्छा लेक्चर झाड़ सकते हो। मैं और कुछ नहीं जानता । मैं तो इतना ही जानता हूँ कि यदि देश की बागडोर मेरे हाथ आ जाय तो इन चोरों, और बेईमानों को सीधा कर दूँ । एक-एक बदमाश को रास्ते पर लगा दूं ।
1
चक्रवर्ती - भाई साहब ! अच्छा है, आप देश को सुधार दें । मैं आपको इस शुभ काम के लिए शकुन देना चाहता हूँ, पर यदि आपने केवल कानून को पकड़ कर शान्ति की मंजिल पानी चाही तो पहुंचना मुश्किल है । आप लोगों को क्या सीधा कर देंगे, कहीं लोग ही आपको सीधा न कर दें ।
आज की सैर इन्हीं बातों में खत्म हो गयी । यद्यपि आपस में थोड़ा हास्य-विनोद भी चलता था, पर व्यंग्य इतने तीखे हो गए थे कि सैर का मजा जाता रहा । फिर भी अपने-आप को अभिव्यक्त कर सभी थोड़ा हल्कापन अवश्य महसूस कर रहे थे। सभी अपने चोट खाये तर्कों की मालिश कर रहे थे ।
रोज की यह सैर हमेशा चलती रही। रेलवे क्रासिंग पर आकर अनायास ही चर्चा समाज व्यवस्था और राजनीति से जुड़ जाती । वहाँ ड्यूटी देने वाले पुलिस को भी इसमें थोड़ा-थोड़ा रस आता । मन ही मन वह बियाणी से बडा नाराज था, क्योंकि गरीबों पर सबसे तीखा प्रहार उसका ही होता था ।
पन्द्रह-बीस दिनों बाद एक दिन मौसम कुछ ठीक नहीं था । थोड़ी बूंदाबांदी भी हो रही थी । और कोई घूमने नहीं आया, केवल बियाणी
आया था । उसे घूमने की ऐसी आदत पड़ गयी थी कि सैर के बिना उसका सारा दिन सूना-सूना-सा बीतता था ? अतः मक्खन जीन की सफेद हाफ पैंट और उसी तरह का सफेद बनियान पहन, हाथ में एक छोटा-सा डंडा ले वह घूमने निकल गया । सारा वातावरण शान्त था । चारों ओर कोई आदमी दिखाई नहीं दिया, पर ज्योंही उसने रेलवे
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org