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८६ / नए मंदिर : नए पुजारी
कना नहीं चाहिए | पर किया क्या जाए, सरकार के लोग खुद ही बेईमानी करते हैं तो कहें किसे ?
बियाणी - बिलकुल ठीक बात है । मैं इस बात का समर्थन करता हूँ । यदि सरकार मजबूत हो तो मजाल है कि कोई यों रेलवे के माल की चोरी कर सके ?
इतने में ड्यूटी पर खड़ा बन्दूकधारी पुलिस बोल पड़ा - सेठजी ! आप लोग जितनी बड़ी चोरी करते है, उसके सामने तो यह कुछ भी नहीं है । बेचारा गरीब आदमी पेट भरने के लिए कुछ इंतजाम कर रहा है, तो भी अपको जुलाब लग जाती है । इन छोटी-छोटी बातों से दाल में हींग भी नहीं पड़ती। वास्तव में तो सरकार को बड़ी मछलियों को फांसने की व्यवस्था करनी चाहिए। वे ही सारे तालाब को गंदा करती हैं । यदि स्वच्छ तरीके से सारा काम चले, हर आदमी को खाने को रोटी मिले तो कौन ऐसा शैतान होगा जो बेईमानी कर अपने लिए नरक का रास्ता साफ करे ? उन्हें तो अपनी तिजोरी भरने से मतलब है । उसी से कालाबाजारी होती है, उसीसे मिलावट होती है । उसीसे गरीब पिसता है जीना उस बेचारे की विवशता है। मौत नहीं आती है तब तक उसे अपने बालबच्चों के पेट में रोटी के दो कौर डालने पड़ते है, पर क्या किया जाय ? व्यापारी लोग उनकी विवशता को कहाँ समझ पाते है ? यों ही बेचारा गरीब अधमरा तो है ही, पर व्यापारी लोग उसे अधमरा भी नहीं देखना चाहते । उनका बस चले तो शायद वे गरीबों को कच्चा ही चबा जायें । faarit एकदम बिगड़ कर बोला- वाह ! तुम यहां क्यों खड़े हो ? खुलेआम चोरी का समर्थन करते हो ? व्यापारी धंधा करता है, वह चोरी नहीं करता है । लगता है, तुम्हारी भी इस खेल में कोई पार्टनरशिप है ।
पुलिस -- मेरी कोई पार्टनरशीप है या नही, इस बात को रहने दें । आप जैसे लोग ही इस चोरी को प्रोत्साहन दे रहे हैं । वे माल सस्ते में खरीदते हैं और मंहगे में बेचते हैं । उसी शह पर यह चोरी का धंधा चलता है । वे यदि धंधा छोड़ दें, तो गरीब का यह धंधा अपने आप ही छूट जाएगा। अत: पहले व्यापारी लोग बेईमानी करना छोड़ें, फिर वे गरीबों को उपदेश दें, सरकार को कोसें। वे अपने धन्धे में तो कोई कटौती
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