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पुनरावृत्ति / ७६
दूसरे वर्ष मैं दशहरे की छुट्टी में राजसमंद नहीं आना चाहता था । पर अचला ने मुझसे आग्रह किया । मैंने कहामें कोई रस नहीं है ।
- अब मेरा राजसमंद जाने
अचला ने कहा - भले ही अब तुम्हारी वहां जाने में कोई अभिरुचि नहीं है, पर कम से कम देवदत्त की याद करने तो चलो ।
इस प्रकार निरंतर यह क्रम बीस वर्ष से चालू है । मैं पिछले पाँच वर्षों से यहाँ आता तो हूँ, पर आनंद मनाने नहीं । यहाँ आकर जी भर कर रोता हूँ । मुझे लगता है, इसमें मेरा कलेजा थोड़ा हलका होता है, पर आज जब एक अज्ञात स्त्री को अपने बच्चे का हाथ पकड़ कर तालाब में स्नान करने से रोकते हुए देखकर फिर मेरी आँखों के आगे देवदत्त की छवि नाचने लगी है । आज मैं यह नहीं कह सका कि - -इतने लोग पानी में नहाने जाते हैं, वे क्या सारे डूब जाते हैं ? बल्कि मेरे होठों में अचला का कहा हुआ यह दोहा नाच रहा था
राजा जोगी अगन जल, याकी उल्टी रीत, दूरा रहियो परसराम, तड़के तोड़े प्रीत |
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