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पुनरावृत्ति / ७७ समझना था, पर उस लाड़ ने उसे जिद्दी भी बना दिया था। अपनी माँ को हराने का उसके पास एक मात्र वही हथियार था-रोना, पर आज तो अचला इस हथियार से भी टस से मस नहीं हई।
मुझसे यह सब देखा नहीं गया। एक ओर तो देवदत्त के मन में गांठ बंधती नजर आ रही थी तथा दूसरी ओर अचला के प्रेम में कुछ दब्बूपन की गंध आ रही थी। अत: मैंने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा--तू देवदत्त को जाने क्यं नहीं देती ? बच्चे को पानी में नहाने का चाव पैदा हो गया है, तो किनारे पर बैठकर नहा लेगा, तू इसे क्यों रोकती है ? । . अचला ने कहा -चाव बहुत होते हैं, मैं कब उन्हें रोकती हूँ। मैं इसके किसी चाव को अधूरा नहीं रहने देना चाहती, पर पानी में मैं नहीं जाने देती।
मैंने अचला का मजाक उड़ाते हुए कहा - इसी प्रकार तू इसे दब्बू बनाये रखेगी। ___ अचला -- यह दब्बूपन की बात नहीं है । अनुभवी आदमियों ने ही तो कहा है
राजा जोगी अगन जल, याकी उल्टी रीत,
दूरा रहियो परसराम तड़के तोड़े प्रौत। मैं-इतने लोग पानी में नहाते हैं, वे क्या सारे डूब जाते हैं ?
अचला-डूब नहीं जाते हैं, तो पिछली बार वह देवगढ़ वाला लड़का क्यों डूब गया था ?
मैं—यों किसी की मौत आ जाती है तो उसको कोई नहीं रोक सकता। इतनी आशंकाओं से आदमी का काम नहीं चल सकता।
मेरी बात अचला के गले तो नहीं उतरी पर वह उसका जबाव नहीं दे पायी । देवदत मेरे हस्तक्षेप से संतुष्ट था। वह मन ही मन हंस रहा था। अत: मैंने भी खुश होकर कहा-चल, बेटा ! हम दोनों ही आज तालाब में स्नान करने जाते हैं । और अचला के विरोध के बावजूद भी हम तालाब चल पड़े । अचला थोड़ी कट कर रह गई, पर मेरी खुशी को अपनी खुशी मान लेने की उसकी आदत थी। अतः हमें सावधान करते हुए बोलीजरा सावधान रहना।
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