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७२ / नए मंदिर : नए पुजारी अतः पिछले दिनों जब रमेश फार्म पर जाता तो अनायास दिलेरसिंह की स्मृति ताजी हो जाती। इस अर्से में मैंने सेठ रामकिशन जी के आलसी और दुश्चरित्र पुत्र रमाकान्त को भी रकम उगाहने के बहाने दिलेरसिंह के घर कई बार आते-जाते देखा। मैं जानता था कि रमाकान्त की रकम उगाहने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। बाप के बहुत कहने पर भी वह कहीं रकम उगाहने नहीं जाता था। निश्चिय ही उसकी दिलचस्पी का कारण तो और ही था।
दिलेरसिंह को भी रमाकान्त की बदनीयती का पता चल गया था। इसीलिये सेठजी के कर्ज से मुक्त होने के लिये उसने अपनी पत्नी के गहने वापिस बेचने का निश्चय कर लिया था। अभी पांच-चार दिन पहले ही वह रमेश ज्वेलर्स स्टोर पर गहनों को वापिस बेचने आया था। उसका ख्याल था कि थोड़े रुपये काट कर रमेश उसके गहने वापिस ले लेगा, पर जब रमेश ने उन गहनों की कसौटी पर कस कर उन्हें खोटे कहकर लेने से इन्कार कर दिया तो दिलेर सिंह का खून खौल उठा। उसने कहा-अभी दो महीने पहले ही तो मैं तुम्हारी दुकान से ये गहने ले गया था । पर रमेश ने उसकी एक न सुनी। उसने उलटा उलाहना देते हुए कहा—मेरी दुकान से गहने ले गये थे, तो तुम्हें आंखें खुली रखनी चाहिये थी। मैं खोटे गहनों का धन्धा नहीं करता । लगता है, तुम मुझे बदनाम करना चाहते हो। पर बच्चू, मैं तुम्हारे झांसे में आने वाला नहीं। यदि तुम सच्चे होते तो दो महीने में ही गहने बेचने क्यों आते ? मैंने तुम्हारे जैसे कई चोरों को चराया है। इसी क्षण मेरी दुकान से नीचे उतर जाओ, अन्यथा ठीक नहीं रहेगा। ध्यान रहे, पुलिस थाना ज्यादा दूर नहीं है।
दिलेरसिंह की सहिष्णुता हद से बाहर हो गई। अपने पर झूठा इल्जाम लगा देख उसका संतुलन बिगड़ गया। उसने भी बहुत-सी अंट-संट बातें कह दीं। राह-चलते अनेक लोग इकट्ठे हो गये । रमाकान्त भी वहां
आ गया था। वह रमेश की हां में हां मिल रहा था। वातावरण इतना विक्षुब्ध हो गया था कि दिलेर सिंह को एक भयंकर-प्रतिक्रिया ने डस लिया।
मैं अतीत की घटना के इन बिखरे टुकड़ों को आगे-पीछे जोड़ने ।
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