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________________ प्रतिक्रियश् / ७१ व्यस्त था । फिर भी पड़ोसी के नाते ऐसे असवर पर उसे धैर्य बंधाना मेरा कर्तव्य था। यह सब चल ही रहा था कि इतने में अफवाह आई कि सेठ रामकिशनजी के युवा पुत्र की किसी अज्ञात व्यक्ति ने हत्या कर दी है। मुझे लगा, इन दोनों वारदातों में कोई अनोखा मेल है, और उसी समय अचानक मेरी स्मृति में दो महीने पहले की एक घटना कौंध गई। उस दिन एक हट्टा-कट्टा गर्वीला नौजवान दिलेरसिंह रमेश ज्वेलरी स्टोर पर अपनी नव-परिणीता पत्नी को लेकर गहने खरीदने आया या। उसकी पत्नी इतनी खूबसूरत थी कि राह चलते लोगों की आंखें उस पर ठहर जाती थी। तब फिर दिलेरसिंह पर तो शादी का नया खुमार था। उसके माता-पिता का देहान्त हो चुका था, अत: वह सब तरह से स्वतंत्र था। नई और सुन्दर पत्नी की गहनों की पहली मांग थी । दिलेरसिंह उसमें बह गया। वह सेठ रामकिशनजी से हजार रूपये कर्ज लेकर पत्नी के साथ उसके गहने खरीदने आया था। मैं भी उस दिन होश में नही रहा। बारबार मेरी आंखें ज्वेलरी स्टोर पर उलझ जाती थी। भड़कीली वेषभूषा. वाली उस सुन्दरी ने रूप की इतनी सुगंध बिखेर दी थी कि मैं अपने ग्राहकों के साथ भी ठीक तरह से व्यवहार नहीं कर पा रहा था । पर इसके बावजूद भी उस दिन मेरी दुकान पर इतने ग्राहक टूट पड़े थे कि मुझे उन्हें निपटाने में काफी झंझलाहट-सी अनुभव हो रही थी। वे भी उस दिन इतने बेसुध नजर आते थे कि उनका मेरे अस्थिर व्यवहार की ओर कोई भी ध्यान नहीं था। सभी लोगों की आंखें ज्वेलरी स्टोर के वन वे ट्राफिक की यात्रा कर रही थी। ___ रमेश ने भी उस दिन खूब हाड़-फोड़ कर दाम लिये। जब सारा सौदा पट गया और भीड़ छंट गई तो उसने बताया आज तो अच्छी मछली फंसी। उसने ही मुझे दिलेर सिंह का नाम पता व उसके सेठ रामकिशन जी से कर्ज लेने की बात बताई थी। इससे संयोग-ही कहना चाहिये कि दिलेरसिंह का घर पास वाले उसी गांव में था, जिस गांव में मेरा कृषि फार्म था। यद्यपि मैं उधर कई बार आता-जाता था, पर दिलेर सिंह के बारे में मुझे कोई ज्ञान नहीं था। परिचय से परिचय बढ़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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