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________________ प्रतिक्रिया रमेश ज्वेलरी स्टोर और मेरी दुकान एकदम पास-पास में है। वर्षों से हम अपना-अपना व्यवसाय करते आ रहे है। पड़ौसी की भांति एकदूसरे का सहयोग भी करते रहते हैं। हम दोनों एक ही मकान मालिक सेठ रामकिशनजी के किरायेदार हैं। दुकानों के ऊपर ही सेठजी का आरामदेह विशाल मकान है। भाड़े की आमदनी के अतिरिक्त उनका ब्याज का भी अच्छा धंधा चलता है। यद्यपि वे किराया और ब्याज बहुत कस कर लेते हैं, पर फिर भी जरूरतमंदी को मौके-बे-मौके उनके पास आना ही पड़ता है। आज जब मैं अपनी दुकान पर आया तो दूर से एक बड़ी भीड़ रमेश ज्वेलरी स्टोर और मेरी दुकान के सामने खड़ी दिखाई दी। थोड़ा आगे आने पर वहां मुझे कुछ पुलिस वाले भी नजर आये। यह सब देखकर मेरी छाती धड़कने लगी। कांपते कदमों से मैं आगे आया। जल्दी ही मुझे पता लग गया कि रमेश ज्वेलरी स्टोर पर आज रात को चोरी हो गई है। काफी माल चोरी चला गया है। लोग आपस में बातें कर रहे हैं - देखो, कैसा नाजुक जमाना आ गया है ! चोरों को तो मानो किसी का डर ही नहीं रह गया है। कोई पुलिस की अकर्मण्यता को कोस रहा है, तो कोई जनता की कायरता को । बीच-बीच में कोई-कोई व्यापारियों की मुनाफाखोरी, बदनीयत तथा शोषण वृति पर भी व्यंग कस रहा है. पर मुझे इस वात से धैर्य बंधा कि मेरी दुकान पर कुछ नहीं हुआ। मैं भीड़ को चीरकर आगे आया और अपने मित्र को सान्त्वना देने लगा। यद्यपि मेरी सान्त्वना से उसे धैर्य नहीं बंध रहा था। वह तो पुलिस को रिपोर्ट लिखाने में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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