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________________ ६८ / नए मंदिर : नए पुजारी लीजिए। कल न जाने क्या हो, मैं नहीं कह सकता । सेठ जी तो इस उत्तर से कुछ नहीं बोले, पर उनके पुत्रों के मुंह में लार टपकने लगी। उनके धर्म-कर्म की परिभाषा में एक मोटी मुर्गी मिल गई थी । श्रतः वे उसे जी भर कर चूस लेना चाहते थे । सौ वर्षों के बही खाते देखे गए, आखिर एक जगह राजाराम का नाम मिल गया । उसने अपने बाप के मृत्यु भोज के लिए सेठ किरोड़ीमल जी के पिता से १०० रुपए उधार लिए थे । अवसर ही ऐसा आ गया कि वे चुकाए नहीं 'जा सके । सेठ के पुत्रों ने बड़ी चतुराई से ब्याज प्रतिब्याज लगाया, हजारों रुपए हो गए थे। उन्होंने बड़ी दया दिखाते हुए कहा - किशन जी, सारा रुपया तुम नहीं चुका सकोगे । हिसाव किताब के झगड़े में मत पड़ो । हम भी नहीं चाहते कि तुम्हारा घर-बार चौपट हो जाय । तुम्हारे बाल-बच्चे -दाने को तरसें । बताओ, अभी तुम अपने साथ क्या लाए हो ? 1 किसान ने बताया - - अभी २ गाड़ी मक्की, १ गाड़ी गुड़, १०० रुपए नगद । सेठ पुत्रों ने कहा- ये तो हमें दे ही दो । साथ २ भैंसें, २ गाय और १०० भेड़-बकरियां और देना । बस, तुम्हारा लेन-देन साफ किए देते हैं । किशन जी को इतना हिसाब-किताब कहां आता था ? उन्होंने इस बात को स्वीकार कर लिया, पर दूसरे ही क्षण सामने जल रही अंगीठी में उन्होंने एक चिमटी भर कर राख उठाई । उसे अपनी हथेली पर रखा और बोले- देखिए सेठ जी ! आपका धर्म आपके पास है और मेरा धर्म मेरे पास । मैं नहीं जानता कि आपने मेरे से जो लिया है वह सही हैं या नहीं, फिर भी आप पर अविश्वास करना मेरा धर्म नहीं है । आपका धर्म आपके लिए फले-फूले मुझे कोई आपत्ति नहीं है । पर इतना आपको - बता देता हूं कि पाप का पैसा कभी नहीं फलता । इतना कहते-कहते किशन जी ने अपनी हथेली पर रखी राख पर फूंक मारी। फिर बोलेआपका खरा पैसा आपके पास रहे जिस और प्रकार यह राख उड़ गई है, उसी प्रकार आपका अन्याय का पैसा उड़ जाय । सेठ पुत्रों ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया ' किशन जी जो कुछ लाए थे, उसे तो ले लिया और पशुओं को लाने के लिए अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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