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अन्याय का पैसा
इस वर्ष फसल इतनी अच्छी हुई थी कि अब भी खेत खलिहान अनाज से भरे थे। शायद सौ वर्षों में ऐसी फसल नहीं हुई थी। इसलिए साठ वर्षों का एक प्रौढ़ किसान, सेठ करोड़ीमल जी के घर आया और उन्हें पुकारने लगा। किसान और सेठजी में केवल राम-राम का सम्बन्ध था। अतः उसे अपने घर आये देखकर सेठजी ने पूछा- क्यों भाई किशन जी! आज कैसे आना हुआ ?
किशन जी ने कहा-सेठ जी, आज हमारा हिसाब-किताब साफ कर दो। इस बार भगवान ने हमें दिल खोलकर दान दिया है, तो मैं भी अपना पिछला दारिद्रय धो देना चाहता हूं। आपका जितना पैसा निकलता हो, उतना ले लीजिए।
सेठ जी जरा विस्मित हुए। उन्हें इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं था कि किशन जी में उनकी कुछ उधार भी है। अतः अपनी स्मृति को साफ करते हुए जरा चिन्तन की मुद्रा में लीन हो गए, पर किशन जी ने कहासेठ जी आप चिन्तित क्यों होते हैं ? __सेठ जी-भाई ! मुझे याद नहीं है कि मैंने तुम्हें कभी रुपये उधार दिए हैं।
किसान-हां, यह आप ठीक कहते हैं, पर मेरा बाप जब मरा था तो उसने मरते-मरते मुझसे कहा था कि सेठजी के कुछ रुपयों का कर्ज़ हमारी तरफ है, अत: जब भी तुम्हारा हाथ खुला हो, तो मेरा बोझ उतार देना। इतने वर्ष फसल अच्छी नहीं हुई, अतः मैं अपने बाप का कर्ज नहीं चुका सका; पर यह कांटा मुझे सदा चुभा करता था। इस बार जब भगवान ने
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