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बंधन और मुक्ति / ५७
मैंने कहा- तो फिर तुम इनका क्या करोगे ?
उसने कहा-कल हमारी स्वतन्त्रता की पचासवीं वर्ष गांठ है , उस उपलक्ष में हमारे प्रधानमंत्री पच्चास कबूतरों को खुले आकाश में बंधन मुक्त करेंगे । अत: मैं उनके लिए कबूतरों को जुटा रहा हैं। अब तक मैंने चालीस कबूतर तो पकड़ लिए हैं, केवल दस बाकी हैं। इससे ज्यादा कबूतर मुझे नहीं पकड़ने हैं। मुझे उसके कथन पर विश्वास नहीं हआ। मैंने सोचा कि ये बटमार भी बात बनाने में कितने माहिर हो गए हैं, पर दूसरे दिन जब मैं अपनी छत पर बैठ कर धूप सेंक रहा था तो यह देखकर विस्मित हो गया कि कबूतर का वही जोड़ा मेरी छत पर धूप में खेल रहा है । एक चच्चे के पैर में अभी तक कल वाले बटमार के जाल का एक धागा फंसा हुआ है। मैं सोचने लगा, अवश्य ही इस जोड़े को आज प्रधान मंत्री ने बंधन मुक्त किया होगा और फिर मैं स्वतन्त्रता की इस परिभाषा में खो गया ।
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