SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ / नए मंदिर : नए पुजारी धीरे मुक्ति-संघर्ष और तेज होता जा रहा था। यद्यपि जाल काफी मजबूत था, फिर भी वह पुराना पड़ गया था , अत: स्थान-स्थान से जीर्ण हो गया था। कबूतर बच्चों के निरंतर के चोंच तथा पंजों के प्रहार से जाल का एक धागा टूट गया और बह एक बच्चे के पंजे में अटक कर रह गया। पर जी-जोड़ प्रयत्न के बाद भी वे मुक्त नहीं हो सके। मैं जिजीविषा के इस प्रयत्न में जड़ और चेतन का भेद स्पष्ट समझ रहा था शायद उनके मन में भविष्य की कोई कल्पना नहीं रही होगी। आगे वे जीयेंगे या मरेंगे, यह स्पष्ट विचार भी उनके सामने सामने नहीं था, बल्कि इस क्षण तो वे भूख को भी भूल गए थे । उनकी चेतना अगर कहीं उलझी हुई थी, तो वह केवल बंधन की अनुभूति में ही उलझ रही थी। उन्होंने अपने सम्पूर्ण सामर्थ्य को स्वतन्त्रता के दांव पर लगा दिया था, पर फिर भी वे मुक्त नहीं हो सके। इतने में बटमार निकट आया। उसे नजदीक आते देख दोनों बच्चे फिर कुछ भयभीत हुए उन्होंने पंखों को तीव्रता से फड़फड़ाया। यद्यपि पंख तो स्वतन्त्र थे, पर वे स्वयं जाल में फंसे हुए थे। अतः मुक्ति असंभव थी। मुझे यह दृश्य देखकर अनुकम्पा आई। मैं अपने-आपको रोक नहीं सका। मैंने बटमार से कहा-भाई ! तुम इन निरीह पक्षियों को जाल में क्यों फंसा रहे हो? मुझे ऊपर से नीचे तक एक हैरत-भरी दृष्टि से देखकर बटमार ने कहा- लगता है, आपने अभी दुनिया देखी नहीं है ? मैंने कहा-यह तो तुम ठीक कहते हो। मेरी अपेक्षा तुम्हारी उम्र बड़ी लगती हैं । पर उम्र का अक्ल के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि तुम्हारे मन में जरा भी करुणा होती तो तुम बिचारे इन निरामिषभोजी पंछियों को यों जाल में नहीं फाँसते । इस बार बटमार के शब्द जरा आर्द्र हो गए थे । मेरी कल्पना के विपरीत उसने कहा-बाबू ! मैं भी तो इनकी ही तरह आप जैसे महाजनों के जाल में फंसा हुआ हूं। मुझे तो शायद बनिया पूरा चूस कर ही दम लेगा । शायद वह मेरी अगली पीढ़ी को भी नहीं बख्सेगा, पर मैं इन्हें मारूंगा नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy