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नए मन्दिर : नए पुजारी / ५३ रहा था कि अभी रात है। बारात के भोजन का समय हो चुका था। बाराती लोग भोजन करने बैठे ही थे कि इतने में सारी बत्तियां एक साथ गुल हो गई। चारों ओर हाहाकार मच गया। एक-दो गैस की बत्ती इधर-उधर थी, उसे लाया गया। जिधर से गैस की बत्ती चली जाती, उधर अंधेरा घुप्प हो जाता था। लोग बुरी तरह चिल्ला रहे थे। बाराती बिचारे बैठे रह गए। पंखे बन्द हो गए। सब गर्मी से बुरी तरह परेशान होने लगे। ऐसे समय में बदमाशों की बन आती है। मिठाई के कई घामे-चुरिये इधर-उधर हो गए । नौकरों ने भी हाथ साफ करना शुरू कर दिया। सेठजी तो जैसे सन्न रह गए। घर के अन्दर भी कोहराम मच गया था। औरतों ने अपने अनुमान लगाने शुरू कर दिए । किसी ने कहा--- देखा न ! गणेश जी की पूजा नहीं की, उसी का यह परिणाम है। किसी ने कहा-सती माता को याद नहीं किया, उसी का यही परिणाम है। पर सेठजी समझ रहे थे यह बिजलीघर के नाग की पूजा नहीं की उसी का परिणाम है। उन्होंने तत्क्षण बहुत सारी मिठाई देकर एक विश्वस्त आदमी को पावर हाउस के बाबू के घर भेजा। उधर उसी क्षण जेनेरेटर का खराब पुर्जा ठीक हो गया। सेठजी सोचने लगे, पुराने देवता तो फल देने में कभी विलम्ब भी कर देते थे, पर नए देवता इस मामले में चुस्त हैं। कम से कम अपनी भेंट-पूजा पाकर काम तो ठीक कर देते हैं।
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