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________________ बन्धन और मुक्ति कबूतर के बच्चों का एक जोड़ा प्रशिक्षण के दौरान अपने मातापिता के साथ आहार की खोज में घूम रहा था । यद्यपि उनके पंख अब काफी खुल चुके थे, पर फिर भी खुले आकाश में वे एक सीमित उड़ान ही भर सकते थे। उनके जीवन का यह स्वर्णिम युग था, जिसमें वे अपने माता-पिता से कुछ महत्त्वपूर्ण गुर सीख रहे थे । वैसे कुछ बातें एक अवस्था के बाद प्राणियों में अपने आप प्रकट हो जाती हैं, पर मां-बाप यह अवश्य ही चाहते हैं कि वे अपनी वह सारी जानकारी अपने बच्चों में संक्रान्त कर दें, जो स्वयं उनमें हैं। इसीलिए कभी मां और कभी बाप सक्रिय रूप से दोनों बच्चों को सिखा रहे थे कि किस प्रकार आहार की खोज करनी चाहिए ? किस प्रकार दानों को चोंच में पकड़ना चाहिए ? किस प्रकार दाना चुगते समय भी चारों ओर से सतर्क रहना चाहिए ? यहाँ तक कि किस प्रकार आक्रमण करना चाहिए और किस प्रकार दूसरे के आक्रमण को विफल करना चाहिए ? पशु-पक्षियों का सारा प्रशिक्षण अनुकरणात्मक ही होता है, पर फिर भी कहीं-कहीं संकेतों द्वारा भी कुछ बातें समझाना आवश्यक हो जाता है । अत: इस दौरान उनकी अपनी गुटु रगं की भाषा का उपयोग भी किया जा रहा था। इसी बीच अचानक बक्चे वहाँ बिछे हुए जाल के निकट आ पहुँचे । जाल में अच्छे दाने बिखरे हुए थे, अतः उन्हें देख बच्चों का मन ललचा उठा । __ अच्छा तो यही होता कि वे जाल की ओर बढ़ने के पहले अपने मां-बाप का संकेत प्राप्त कर लेते। पर जिनके लिए भोजन ही एक बड़ा लालच होता है भोजन दीख जाने के बाद उनके लिए अपने पर नियंत्रण Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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