________________
'५२ / नए मंदिर : नए पुजारी
अपनी पुत्री की शादी करने के लिए ही इधर आए थे । पैसे की इनके पास कोई कमी नहीं थी। बड़ी धूमधाम से वे अपनी लड़की की शादी कर रहे थे। गाँव के सभी लोग इस अवसर पर किसी न किसी रूप में लाभान्वित हो रहे थे,अत: चारों ओर हर्षोल्लास का वातावरण छाया हुआ था। सेठजी भी खूब खुले हाथ से पैसा फेंक रहे थे। पर गांव के नये मंदिर पावर-हाउस की ओर उनका ध्यान नहीं गया। पावर हाउस के बाबू ने एक व्यक्ति के माध्यम से सेठजी का ध्यान आकर्षित किया भी, पर सेठजी ने कहा - अरे उसको तो फिर देख लेंगे । यद्यपि सेठजी का यह विचार नहीं था कि पावर हाउस के वाबू की उपेक्षा की जाये। जब वे इतना पैसा खर्च कर रहे थे तो इस छोटी सी बात के लिए भला वे उसको क्यों नाराज करते? पर उनका ख्याल था कि शादी हो जाने के बाद वे उसको राजी कर देंगे।
शादी की सारी तैयारियाँ हो गई। मंडप भी बन गया। बिजली से इतना सजाया गया था उसे कि कोसों तक उसकी बल्ब-पंक्ति लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही थी। खारों ओर यही चर्चा धी-ऐसी सजावट तो कभी नहीं हई । होती भी तो कहां से ? यहां बिजली को आए हुए लंबा समय नहीं हुआ । सेठजी अपनी इस प्रशंसा से बहुत प्रसन्न हो रहे थे। उन्हें शायद इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि यही बिजली उद्योगों में लगकर कितना उत्पादन बढ़ा सकती थी। मनुष्य अपने अहंकार के तुच्छ घेरे को तोड़कर आगे नहीं बढ़ पाता है, तभी आडम्बर पनपते हैं। ___ पावर हाउस पर बाबू लम्बे समय तक अपनी भेंट-पूजा की प्रतीक्षा करता रहा। अब तो भात का अतिम दिन भी आ चुका था। आज भी उस के घर मिठाई का प्रसाद नहीं पहुंचा था। उसने सोचा-बनियां मुझे धोखा दे रहा है। आगे की वात कह कर शादी के बाद वह मुझे यों ही टरका देना चाहता है । भला स्वस्थ हो जाने के बाद कोई बीमार डाक्टर को बुलाता है ? आज का अवसर ही अंतिम अवसर है। यदि आज कुछ नहीं हो सका, तो फिर कुछ नहीं हो सकेगा । रात का समय हो चुका था। मंडप के चारों ओर बिजलियां चमकने लगीं। ऐसा लग ही नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org