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अनुकरण / ४६ अपने पैर की अंगुलियों के बल पर खड़े होकर किसी प्रकार उसन चिटकनी चढ़ा दी और मजे से अंदर स्नान करने लगी ।
थोड़ी देर में उसकी मम्मी भी स्नान करने के लिए स्नानघर आई । अंदर दरवाजा बंद देखकर उसने आवाज दी-अंदर कौन है ? कमला ने खुशी में झूमते हुए कहा - मम्मी मैं अभी स्नान कर रही हूं । तू बाद
आना । मां को यह सुनकर हंसी आ गई। विचार करने लगी- बित्ते भर की यह छोकरी भी अजीब है । अभी तक पूरे कड़े पहनने नहीं आते हैं, तो भी बड़ों की चाल चलती है। उसने बाहर खड़े-खड़े ही कहा – बस, हो गया तुम्हारा स्नान । अब दरवाजा खोल ।
कमला ने फिर कहा नहीं, अभी नहीं, थोड़ी देर है । पर जब मां ने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया तो आखिर उसे उठकर दरवाजा खोलने के लिए विवश होना पड़ा। ज्यों ही वह दरवाजा खोलने लगी कि चिटकनी कठोर हो गई । वह बार-बार अंगुलियों पर खड़ी होकर दरवाजा खोलने का प्रयास करने लगी, पर चिटकनी टस से मस नहीं हो रही थी । उसका बाल- विवेक हार गया और वह रोने लगी। मां ने बाहर खड़े-खड़े जब उसका रोना सुना तो गुस्से में होकर बोली - शैतान कहीं की, यदि दरवाजा नहीं खुलता है तो अंदर घुसी ही क्यों थी ? बाहर निकल, आज तेरी मरम्मत करूंगी |
यह सुनते ही उसका रहा-सहा विवेक भी गुम हो गया और वह बेसुध होकर अंदर ही गिर पड़ी। धमाके की आवाज सुन कर उसकी मां के होश भी गुम हो गए। वह जोर-जोर से आवाज देने लगी, पर कमला तो अब होश में ही कहां थी, जो उत्तर देती । मां ने आस-पास सहायता के लिए पुकारा तो दादी आई। उसने भी आवाजें लगाईं, पर अंदर तो मौन का गहरा सन्नाटा छाया हुआ था। एक-दो मिनट भी नहीं हुआ था कि इस अकल्पित आधात से कमला की मां भी बेहोश होकर गिर पड़ी । अब तो घर में कुहराम मच गया । कोई डाक्टर की ओर दौड़ा तो कोई सुथार की ओर । कोई बजरंगबली की मनौती मनाने लगा तो कोई शंकर भगवान की । कमला के दादा को यह समाचार मिला तो वे भी दौड़ कर आये । एक क्षण वे भी किंकर्तव्यविमूढ़ रह गए । वे सोचने
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