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________________ ५० / नए मंदिर : नए पुजारी लगे-आज यह क्या हो गया ! उन्होंने आव देखा न ताव पास में ही मुसल पड़ा हुआ था। उठाकर उसे ही स्नानघर के दरवाजे पर दे मारा। दो-चार धमाकों में ही प्लाइवुड का दरवाजा टूट गया, अंदर कमल बेहोश पड़ी हुई थी। दादा ने उसे उठाकर छाती से चिपका लिया। उनकी आंखों में आंसू बहने लगे । उनका हृदय भी इतना जोर से धड़कने लगा कि कहीं कमला से पहले कोई दूसरी घटना न घट जाये। दादी ने कमला की मां को संभाला। दोनों पर ठंडा पानी छिड़ का गया। हवा की गई तब जाकर कहीं दोनों को होश आया। जब उसने अपनी आंखें खोली तो दादा ने पूछा - बेटा, तूं अंदर गई ही क्यों थी ? तुझे स्नान करना था, तो मुझे कहना चाहिए था। __कमला ने अत्यंत सहजता से कहा - दादा, अब तो मैं बड़ी हो गई हूँ। अब मुझे अपने-आप ही स्नान करना चाहिए। दादा--पर अंदर जाकर त ने दरवाजा बंद क्यों किया ? कमला-वाह, दरवाजा क्या मैं अकेली बंद करती हूं ? तुम भी तो रोज दरवाजा बंद करते हो ? फिर मुझे ही क्यों कहते हो? सारे घर में हंसी का एक फव्वारा छूट गया। क्षण भर पहले जो गहरी उदासी छा गई थी, वह जैसे कमला के एक बोल से उड़ गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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