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४८ / नए मंदिर : नए पुजारी
संस्कार बच्चों में देखने को मिलते हैं । ऐसा क्यों होता है, यह एक बहुत ही गहरा सवाल है । निश्चय ही उसके कुछ अदृश्य कारण हैं । वे अदृश्य कारण क्या हैं इसका दार्शनिक विचारक लोग अलग-अलग ढंग से विचार करते हैं, पर इतना तय है कि हर कार्य का अदृश्य कारण श्रंखला के साथ जुड़े रहने के बाद भी उसके प्रकट होने के अपने कुछ निमित्त अवश्य होते हैं । वे निमित्त आदमी को अपने वातावरण से ही प्राप्त होते हैं । कुछ व्यक्तियों के लिए वे निमित्त शुभ का हेतु बन जाते हैं, कुछ व्यक्तियों के लिए a अशुभ का हेतु बन जाते हैं । कुछ बच्चों में वे कोई भी स्थायी प्रतिबिम्ब नहीं बना पाते, पर कमला हर घटना को इतनी बारीकी से देखती और ग्रहण करती कि सभी आश्चर्य चकित रह जाते । यद्यपि उसकी अवस्था 3-4 वर्ष की ही थी, पर उसके हिसाब से उसका सारा जीवन निश्चित हो चुका था। यहां तक कि अपनी बुआ की बरात में आये हुए फूफा के हम उम्र छोटे भाई को उसने अपने पति के रूप में स्वीकार कर लिया था । वह बहुत ही सहजता के साथ सब के सामने इस मानसिक संस्कार को स्वीकार करती थी । इसका यह अर्थ नहीं है कि यह सम्बन्ध तय हो गया था, पर अपने सामने आने वाले हर बिम्ब को वह कितनी सजगता से प्रतिबिम्बित करती थी, यह उसका एक उदाहरण था । इसी तरह हर एक घटना उसके मन पर अपना कुछ स्थायी - अस्थायी प्रभाव छोड़ जाती थी ।
उसके घर में एक ही स्नानागार था । जब भी कोई स्नान के लिए जाता तो अंदर से बाथ रूम को बंद कर लेता था । कमला को भी अनेक बार सहजता ही स्नानागार में जाने का मौका मिलता था । जब भी वह किसी के साथ बाथ रूम में जाती तो देखती कि अंदर जाकर हर एक दरवाजा लगाकर कपाट के बीच में लगी हुई चिटकनी को चढ़ा देता है । यद्यपि रोज उसे दादा-दादी माँ या नौकरानी आदि स्नान करवाते
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थे । पर एक दिन उसको भी अपने-आप स्नान करने का शौक चर्राया । उसने तौलिया हाथ में लिया और स्नानाघर में घुस गई । उसकी अनुकरण प्रिय वृत्ति का यहीं अन्त नहीं हुआ, अपितु अन्दर जाकर उसने चिटकनी भी चढ़ा दी । यद्यपि चिटकनी तक पहुँचने में उसे काफी तकलीफ हुई ।
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