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बचत की आदत / ४५
किया था, पर फिर भी ये संभल न पाये। इसका नतीजा यह हुआ कि कारखाना हमारे हाथों से निकल गया। यह दुर्भाग्य अब भी समाप्त नहीं हुआ है। जो आदत एक बार पड़ जाती है वह मिटनी बड़ी मुश्किल है । न जाने अव हमारा क्या होगा ? पर भाई ! मुझे खुशी है कि कारखाना हरिराम के हाथ आ गया। हमारे से तो वह जाने का ही था, पर हरिराम ने कुछ पैसे जमाकर लिए, इससे वह दूसरों के हाथों में जाने से बच गया। अब तो तुम्हारे सभी पोते भी उसी में काम करने लगे हैं। फूसाराम-यह पैसा तो फिरत-घिरत की छाया है। कभी इधर आता है
तो कभी उधर । पर इतना तय है कि लक्ष्मी टिकती उसी के पास है, जो बचत करना जानता है। जो बचत करना नहीं जानता उसके पास भले लाखों रुपये क्यों न हो जाएं पर वे टिक नहीं सकेंगे और बचत करने वाला आदमी पैसा-पैसा बचाकर भी लखपती बन सकता है। सेठजी, तुम्हारा और हमारा सम्बन्ध पैसे का नहीं है। तुम हमारे गांव के सेठ हो। हम हमेशा तुम्हारे सामने झुकते ही रहेंगे।
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