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४४ / नए मंदिर : नए पुजारी
खोलकर बात करने का मौका मिला था अतः उनकी आँखों में भी हर्ष के आँसू उछल आये । सचमुच बूढ़ा हृदय ही दूसरे बूढ़े
के हृदय की पीड़ा को जानता है । फसाराम बम्बई में एक महीने रहा । उसके दिन का अधिक भाग सेठ मायाराम के साथ बातों में ही गुजरता । मायाराम का तो मानो बचपन ही लौट आया था। उसने अपने गांव की एक-एक बात को खोदखोद कर पूछा। खेत-खलिहान से लेकर हाट-हवेली तक की और चाकर से लेकर ठाकर तक की सारी बातें खुलकर हुई। ये सब बातें करते उसे इतना आनन्द आता कि उसके सामने सिनेमा और टी०वी० का आनन्द भी फीका-सा अनुभव होता था। जब फूसाराम चला गया तो सेठजी को एक बहुत बड़ी रिक्तता की अनुभूति हुई। ___ पाँच वर्षों के बाद फिर एक ऐसा अवसर आया, जब पूसाराम बम्बई आया। अम्बिका फर्नीचर अब हरिराम के पास आ गया था। फूसाराम उसके मुहूर्त के अवसर पर ही यहाँ आया था। यद्यपि अम्बिका फर्नीचर के स्वामित्व में अन्तर आ गया था। वह कमलकुमार से हटकर हरिराम के पास आ गया था, पर सेठ मायाराम और फूसाराम के मन में कोई अन्तर नहीं आया। वह पहले ही की तरह रोज सेठजी के पास जाता और घंटों बातों में खो जाता। हरिराम के लिए कमलकुमार अब कोई महत्व नहीं रखते थे, पर पूसाराम के लिए सेठ मायाराम वही महत्व रखते थे जो पहले रखते थे। बदली हुई परिस्थिति में जब वह सेठ जी के पास बैठता तो उन्हें और अधिक अच्छा लगता । रोज-रोज की बातचीत में सेठजी ने फूसाराम को बताया कि पोते फिजूलखर्ची से किस तरह व्यसन-ग्रस्त हो गये। गंदे लोगों के सम्पर्क से इनकी आदतें बिगड़ गई और धीरे-धीरे काम पर से पकड़ कमजोर होती गई। ऐशआराम और मौज-मजों तथा यार दोस्तों ने उन्हें इतना गुमराह कर दिया कि उनके लिए अम्बिका फर्नीचर को सम्भालना भारी पड़ गया। यद्यपि कमलकुमार ने कुछ साइड बिजनेस और शुरू कर दिया था, इसलिए हम भिखारी बनने से बच गए, पर हमारी जो स्थिति अम्बिका फर्नीचर से थी वह अब नहीं रह गई। हरिराम ने समय-समय पर इन्हें बहुत सावधान
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