SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनकरण हिन्दुस्तान में अकसर लड़कियाँ हीनताग्रस्त बातावरण में ही जन्मती, और पलती-पुषती हैं। लड़का भले ही आगे जाकर नालायक ही क्यों न निकल जाय, जैसे कि अधिकांश निकलते हैं, पर उनका जिस उत्सुकता से स्वागत होता है उतना लड़की का नहीं होता। कहीं-कहीं तो उन्हें जन्मते ही मार दिया जाता है। जहाँ वे शरीर से ज़िन्दा रह जाती हैं, वहां धीरे-धीरे उनकी आत्मा मर जाती है। यद्यपि ऊपर से वे हंसतीखेलती दिखाई देती हैं, पर अन्दर से उनमें जो एक हीन भावना घर कर जाती है वह उनमें स्वतन्त्र व्यक्तित्व को उभरने नहीं देती। पुरुष ने उनकी हीन भावना को अलंकार बनाने की कोशिश की है, पर जिस बोझ के नीचे वे दब जाती हैं वह कम नहीं होता है, अपितु धीरे-धीरे बढ़ता ही जाता है। पर कमला इस अभिशाप से मुक्त थी। उसका एक कारण तो यह था कि वह चार भाइयों की इकलौती लाडली बहन थी। उससे भी बड़ा कारण यह था कि उसके आगमन के साथ ही परिवार की परिस्थिति का आश्चर्यजनक ढंग से काया पलट हो गया। जिस वर्ष उसका जन्म हुआ था उस वर्ष से परिवार को न केवल अकल्पित अर्थ लाभ ही हुआ था, आनन्ददायक सम्मान भी प्राप्त हुआ था। सदा बीमार रहने वाली कमला की माँ तो उस वर्ष से अपने आप स्वस्थ रहने लगी। उसके दादा प्यार से उसको कमला नहीं कह कर कमल ही कहते थे। यद्यपि कमला (लक्ष्मी) तथा कमल (फूल) का अर्थ-भेद उन्हें मालूम था, बल्कि कमला ने यह अभिधान भी इसीलिए पाया था कि वह घर में धन की देवी का रूप ग्रहण करे, पर फिर भी दादा के अवचेतन संस्कारों के पुत्रत्व ने पुत्रीत्व को हरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy