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________________ तीसरा अपराध | ३६ मेरे मामा का वेटा भाई अनिल था। मैंने आश्चर्य से कहा, अरे अनिल ! तू यहां कैसे ? कहां भागा जा रहा है ? क्या तुमने कोई एक्सीडेंड किया है ? ___अनिल मेरे पैरों में पड़कर बोला-भाई साहब ! मेरी गलती तो नहीं है, पर फिर भी यह सच है कि एक एक्सीडेंट मुझसे हो गया। मेरी यह भी गलती है कि मैं वहाँ पर रुका नहीं। मैंने सोचा कि रुकंगा तो लोग मुझे पीटे बिना नहीं छोड़ेंगें। अत: भाग कर आ गया। अब जो कुछ करना हो, सो कर लो। आपके हाथों पिटकर मुझे दुःख नहीं होगा। ___मैं रमेश के ऐक्सीडेंट की बात तो भूल गया और सोचने लगाक्या हमारा जीवन अपराधों का एक सिलसिला ही है ? क्या हम एक अपराध को पकड़ने के लिए दूसरा अपराध करते रहते हैं ? अब रमेश का एक्सीडेंट करने वाले साइकिल-सबार के प्रति मेरा गुस्सा कुछ ठण्डा हो गया। मैंने उससे कहा, भाई साहब ! आपने जो गलती की है, उससे भी बड़ीगलती अनिल की है। अनिल मेरा भाई है अतः मैं भी उसकी ओर से माफी मांगता हूं। पर भाई होने मात्र से उसका अपराध कम नहीं हो जाता। वास्तव में हमारा राष्ट्रीय चरित्र ही ऐसा हो गया है कि हम नागरिकता के नियमों का पालन नहीं करते। मैं आप दोनों से इससे बढ़कर और कुछ नहीं कह सकता कि हमें मानवता का पाठ सीखना चाहिए। अब आप दोनों ही घर जायें और भविष्य में नागरिकता का ध्यान रखें। वे दोनों अपने-अपने घरों की ओर चले गए। मैं अपनी साइकिल पर बैठकर घर वापस आ रहा था और सोच रहा था कि यदि तीसरा साइकिल सवार अनिल नहीं होता, तो मैं क्या व्यवहार करता ? अनिल के मेरे भाई होने के नाते क्या रमेश का एक्सीडेंट आया-गया हो सकता है ? क्या मेरे पड़ोसी यह नहीं समझेंगे कि एक अपराध को दबाने के लिए मैं दूसरे अपराध को माफ करने का तीसरा अपराध कर आया हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003159
Book TitleNaye Mandir Naye Pujari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlalmuni
PublisherAkhil Bharatiya Terapanth Yuvak Parishad
Publication Year1981
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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